Sunday 16 February 2014

दरभंगा राजक पूर्व रैयतगण क प्रति महाराजाधिराज श्री कामेश्वर सिंह क संदेश।


दरभंगाक पूर्व रैयतगण।
लगभग ४०० वर्ष पूर्व भारत क सम्राट अकबर हमर पूर्वज म.म.उपाध्याय महेश ठाकुर के हुनक पांडित्य सं मुग्ध भ 'सरकार -ई -तिरहुत ' क शासन भार देलथिन्ह। अंग्रेजी आधिपत्य स्थापित हयबासन पहिने धरि कुलाचारक अनुसरण करैत हमर पूर्वज गण ऒही रुपे एहि झेत्र में राज्य कयलैन्ह। ईस्ट इंडिया कम्पनी तत्कालीन हमर पूर्वज के शासनाधिकार सन वंचित करवाक पूर्ण प्रयास कयल। २० वर्ष धरि संघर्ष चलल। परन्तु जे शक्ति भारत सम्राट क आसन्न डोला देने छल ओहिसँ पार पायब कोना सम्भव छल - अपेझाकृत न्यून शासनाधिकारिक हेतु सुलह भेल ;और तकर परिणामस्वरूप पहिला झेत्रक पचमांश झेत्र पर हुनका जमींदारी -हक़ देल गेलैन्ह। राजस्व मलेहाजी निश्चित भेलैन्ह ,और जे भू -भाग अपहरण भेल छलैन्ह तकरा स्वीकार करैत अंग्रेज सरकार निश्चित रूप सँ मालिकाना देब गछलकैन्ह।  तहिया सँ आई धरि एहि रूपक सम्बन्ध हमरा और अहाँ लोकनिक बीच वंशानुक्रम सँ चल अबैत छल।  एही बिच में रैयती कानून सभ सँ तथा कृषि कर तथा सेस व्रद्धि क कारणे वस्तुस्थिति में महान परिवर्तन भेल गेल ; तथापि बाहरी रूप रेखा यथास्थित रहल।
 गत पंद्रह वर्ष सँ वैयक्तिक जमींदारी प्रथा क अंत करवाक भारतव्यापि उद्योग जोरशोर सँ भय रहल अछि। आई शासन - सत्ता जनताक हाथ में छैक।  जनता जिनका अपन प्रतिनिधि बनाय शासन करवाक भार देने छैन्ह हुनक अधिकांश एहि प्रथाक अन्त शीघ्रताशीघ्र करय चाहैत छथि।  किछु दिन पूर्व ई विषय भय गेल।  एहि प्रकारेँ व्यक्त जनता क इच्छा क अबहेलना कोण देशभक्त नागरिक कय सकैत अछि ? ककरो अधिकार देब वा ककरहु अधिकारक अपहरण करब सुव्यवस्थित परिस्थिति में शासन -सत्ताधिकारिक हाथ में रहयत छैक।  अतएव , जखन संविधान क संशोधन बिहार जमींदारी उन्मूलन कानून कें ,जकरा बिहार क उच्च न्यायलय अवैध घोषित कयने छल , वैध बनयबाक हेतु …  जायत छल , तखन हम भारतक प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू के लिखि देलियैन्ह जे हम न्यायलय क शरण आब नहीं लेब।  ओ जे न्याय -संगत बुझथि से करथि।  फलतः बिहार जमींदारी उन्मूलन कानूनक अनुसार ई प्राचीन राज बिहार सरकारक हाथ में चल गेलैक।
 अहाँ लोकनि सँ वंशपरम्पराक एतेक दिनक सम्बंध छुटवाक सँ हमरा असीम दुःख अछि परन्तु संतोष केवल अहि विषय लय क होयत अछि जे हमरा और अहाँक लोकनिक बीच जे मतभेद छल से नहीं रहत और वर्गभेदक कारणे जे विषमता अनिवार्य रूपे  उत्पन्न होयत छल से हो नहीं होयत।  ताहि सँ  ई हो सम्भव जे हमरा लोकनिक सम्बन्ध औरो  घनिष्ठ  भय जाय। हम अहि अवसर पर एतबे कहब जे हमरा सँ अथवा हमर कर्मचारीगण सँ जे त्रुटि भेल हो तकरा विसरी जयवाक उदारता अहाँ  लोकनि देखाबी ;और मालिकक स्वरुप में नहि भाईक स्वरुप में सदा हमरा और हमर परिवारक लोक केँ अहाँ लोकनि  अहाँ क  परिवारक लोक देखैत रही।
                                                                                                    --श्री कामेश्वर सिंह
Indian Nation Press ,Patna