Friday, 2 February 2018

दरभंगा राज का झंडा और राज चिन्ह






मिथिला के मधुबनी के भौड़ा गढ़ी और दरभंगा के आनंदबाग महल फिर रामबाग किला के सिंह द्वार के ऊपर दरभंगा राज का  सुर्ख लाल रंग का झंडा जिसके बीच में षटकोण बना हुआ जैसा इसरायल के झंडे में है , लहराता था और उसके बीच मछली , मछली के नीचे श्री कृष्ण और षटकोण के आठों कोण में दुर्गा सप्तसती का सिद्ध सम्पुष्ट मन्त्र ' करोति सः न शुभे हेतेश्वरी , शुभानि भद्रयान भिहन्ति चपादः " का एक - एक शब्द उद्धृत था जो लोक कल्याण और समृद्धि और विपत्ति नाश का निवारण करता है . दझिण के महान पंड्या राज के राजकीय झंडे में भी मछली का चिन्ह था .
षट्कोण प्राचीन दक्षिण भारतीय हिंदू मंदिरों में देखा जाता है . यह नर-नारायण, या मनुष्य और ईश्वर के बीच हासिल संतुलन की सही ध्यान स्थिति का प्रतीक है, और यदि बनाए रखा जाता है, तो "मोक्ष" या "निर्वाण" (सांसारिक दुनिया की सीमाओं से छुटकारा पाने और इसके भौगोलिक गुणों) प्राप्त होता है.
मछली दृढ़ संकल्प और लचीलेपन का प्रतिनिधित्व करते हैं। मिथिला का प्रतिक चिन्ह मछली है जो शुभ -सौभाग्य और प्रसन्नता का द्योतक है . चीन/ जापान के तरह मिथिला में भी उपहार के रूप में मछली भेंट स्वरुप दी जाती है . मिथिला में मछली की बहुलता है जल संसाधन प्रचुर है और मैथिल को खाने में मछली बहुत पसंद है . मछली देखकर यात्रा करना सबसे शुभ माना जाता है . मैथिल मीन- मेख निकालने में परांगत हैं . दो हजार वर्ष पूर्व पंड्या साम्राज्य के तमिल राजाओं का ध्वजा पर मछली चिन्ह था . पंड्या के राजकुमारी मीनाक्षी का नाम मीन जैसा अक्ष यानि आंख के कारण रखा गया था . वेदों में एक रहस्यमय राजा मतस्य सम्मेद का उल्लेख है . प्रलय के समय मीन ने ही सृष्टि की रक्षा की थी .मिथिला के दरभंगा राज का राज चिन्ह भी मछली था जो उनके सिंहासन , सिंहद्वार, महल , संरचना , किताब / पत्र आदि में भव्यता से अंकित हैं .ईसाई का धार्मिक चिन्ह में भी मछली का उपयोग देखा जाता है . भगवान विष्णु का पहला अवतार मछली है . मिथिला के दरभंगा के राज के राज चिन्ह के नीचे लिखा श्री कृष्ण भगवान विष्णु का हीं द्दोतक है और राज के झंडे का लाल रंग उत्साह , उमंग और नवजीवन का प्रतिक है . मिथिला में विशेषकर हिन्दू धर्म में शादी में वधु लाल रंग की वस्त्र पहनती हैं जो इसी का द्योतक है . मछली वंश बढ़ाने वाली भी मानी जाती है .

2 comments:

  1. विस्तृत जानकारी के लिए बहुत बहुत साधुवाद
    यदि इस ब्लॉग में ईस्वी का भी उल्लेख होता, जैसे की यह प्रतीक किन राजवंशो के समय अपनाया गया था और किस महाराजा के समय अंतिम स्वरूप मिला, तो ब्लॉग और भी तथ्यपरक होता .
    धन्यवाद .

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