Friday, 31 August 2018

देव दीपावली


देव दीपावली
काशी मे देव दीपावली किछु वरख से पूरा देश आ विदेश मे आकर्षण क केंद्र बनल अछि . वोहि दिन साँझ होयते बनारस क ८० से अधिक घाट दीप क रौशनी से जगमगा उठैत अछि . माननीय  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी जिनकर संसदीय क्षेत्र सेहो बनारस अछि अहि महोत्सव से काफी प्रभावित भ पिछला साल बनारस क एक तरहे सांस्कृतिक पहचान बनि चुकल देव दीपावली क नयनाभिराम दृश्य अपन टूइटर पर सेहो देने छला . ई महोत्सव दिवाली क १५ दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा क दिन मनौल जायत अछि .  ओही दिन मिथिला क महत्वपूर्ण पावैन सामा चकेवा सेहो पूरा मिथिला क संग बनारस मे सेहो मनौल जायत अछि .
ई महोत्सव काशी मे १९१५ ई . से मनायेल जायेत अछि . . एकर मनेवाक बहुत रास मान्यता अछि . सामा चकेवा बनारस स्टेट क रामनगर फोर्ट मे सेहो मनायौल जायत छल . कुंवर ईशान बतवैत छैथ जे महारानी साहिबा अपन ननिहाल मिथिला क शिवहर स्टेट से अहि परम्परा के काशी आनने छली . वो पैग विदुषी छली . वो स्कन्द पुराण क कथा सुना के प्रम्परक शास्त्रीयता प्रमाणित केने छली . वो हमर नानी हजूर छली . हुनकर कहब छल जे इ परम्परा पहिनो काशी में छल . अहि उत्सव के हमर माताश्री आ दीदी सेहो मनबैत छली . हम भाई सब सेहो बेस अन्नंद करैत छलौंह . सामा के वोहि दिन साँझ मे गंगाजी मे विसर्जन होयत छल आ खौंछ भरवाक रस्म सेहो होयत छल जही में बहिन भाई के चुडा – दही दैत छली आ भाई बहिन के वोहि मे से निकैल के दैत छलाह . एकर अर्थ छल कि भाई – बहिन सदिखन बांट के जोवन क सुख पोउत . समां के चुरा – दही खुआ सिंदूर से सजा आ खोइछा d के विदा काएल जायत छल . विदाई काल शहनाई सेहो बजैत छल जेना सामा  के सासुर विदाई भ रहल हो l जगमग दीप क संग सामा के गंगाजी मे विसर्जन वास्तव मे दिव्य लगैत छल . काशी अऔर मिथिला क परम्परा क काशी मे ई अद्वितीय मेल छल .  






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Saturday, 3 February 2018

बाबू कृष्णनंदन सिंह

राघोपुर ड्योढ़ी , सकरी , दरभंगा एक बहुत बड़ी जमींदारी हुआ करती थी . दरभंगा के महाराज माधव सिंह जिनके नाम पर दरभंगा के मधेश्वर ( माधवेश्वर ) मंदिर परिसर है उनके एक पुत्र बाबू गोविन्द सिंह के संतान का यह ड्योढ़ी है . राष्ट्रीय आंदोलन में इनकी महती योग्यदान रहा है १९२१ में जयप्रकाश जी के स्वसुर और चम्पारण सत्याग्रह में गाँधी जी के निकटतम सहयोगी ब्रजकिशोर प्रसाद जिनकी चर्चा में गाँधी ने अपनी पुस्तक ( An Expriment Of Truth ) में पुरे एक पृष्ट में लिखे है को आर्थिक मदद देते थे . तिलक स्वदेश फण्ड में राघोपुर ड्योढ़ी के बाबू यदुनंद सिंह ने १९२१ में १००० रूपये दिए . उनके पौत्र स्व. बाबू कृष्णनंदन सिंह ने सी . ऍम . कॉलेज और चंद्रधारी संग्राहलय के निर्माण में भी योग्यदान दिए अभी भी सी . ऍम . कॉलेज के विवरणिका में उनके योग्यदान उल्लेखित है .अपने पिता बाबू हरिनंदन सिंह के नाम पर हरिनंदन सिंह स्मारक निधि द्वारा मिथिला के नामी विद्वान की पुस्तक प्रकाशित है तथा पुरष्कृत है . चेतना समिति द्वारा १९८२ में बाबू कृष्णनंदन सिंह को मैथिलि के लिए उनके योग्यदान हेतु ताम्र पत्र से सम्मानित किया गया था .अखिल भारतीय मैथिलि साहित्य परिषद , स्थापित १९३० के ये अध्यझ थे जिसमे आचार्य सुरेंद्र झा सुमन , आचार्य तंत्र नाथ झा आदि सदस्य और पदाधिकारी थे . अपने समधी डा . आदित्यनाथ झा , प्रथम उप राज्यपाल , दिल्ली के सहयोग से राघोपुर में एक सुदृढ़ पुस्तकालय संचालित की . .
वर्तमान में बाबू कृष्णनंदन सिंह के अभिन्न मिथिला के बिभूति श्रद्धेय श्री चन्द्रनाथ मिश्र अमर और उनके अनुज भ्राता ( ममेरा ) श्रद्धेय श्री रामानंद झा रमन को प्रातः स्मरण करते हुए अपने मातामह बाबू कृष्णनंदन सिंह को उनके पुण्य तिथि 15 जनवरी पर श्रद्धा सुमन अर्पित . 

Friday, 2 February 2018

दरभंगा राज का झंडा और राज चिन्ह






मिथिला के मधुबनी के भौड़ा गढ़ी और दरभंगा के आनंदबाग महल फिर रामबाग किला के सिंह द्वार के ऊपर दरभंगा राज का  सुर्ख लाल रंग का झंडा जिसके बीच में षटकोण बना हुआ जैसा इसरायल के झंडे में है , लहराता था और उसके बीच मछली , मछली के नीचे श्री कृष्ण और षटकोण के आठों कोण में दुर्गा सप्तसती का सिद्ध सम्पुष्ट मन्त्र ' करोति सः न शुभे हेतेश्वरी , शुभानि भद्रयान भिहन्ति चपादः " का एक - एक शब्द उद्धृत था जो लोक कल्याण और समृद्धि और विपत्ति नाश का निवारण करता है . दझिण के महान पंड्या राज के राजकीय झंडे में भी मछली का चिन्ह था .
षट्कोण प्राचीन दक्षिण भारतीय हिंदू मंदिरों में देखा जाता है . यह नर-नारायण, या मनुष्य और ईश्वर के बीच हासिल संतुलन की सही ध्यान स्थिति का प्रतीक है, और यदि बनाए रखा जाता है, तो "मोक्ष" या "निर्वाण" (सांसारिक दुनिया की सीमाओं से छुटकारा पाने और इसके भौगोलिक गुणों) प्राप्त होता है.
मछली दृढ़ संकल्प और लचीलेपन का प्रतिनिधित्व करते हैं। मिथिला का प्रतिक चिन्ह मछली है जो शुभ -सौभाग्य और प्रसन्नता का द्योतक है . चीन/ जापान के तरह मिथिला में भी उपहार के रूप में मछली भेंट स्वरुप दी जाती है . मिथिला में मछली की बहुलता है जल संसाधन प्रचुर है और मैथिल को खाने में मछली बहुत पसंद है . मछली देखकर यात्रा करना सबसे शुभ माना जाता है . मैथिल मीन- मेख निकालने में परांगत हैं . दो हजार वर्ष पूर्व पंड्या साम्राज्य के तमिल राजाओं का ध्वजा पर मछली चिन्ह था . पंड्या के राजकुमारी मीनाक्षी का नाम मीन जैसा अक्ष यानि आंख के कारण रखा गया था . वेदों में एक रहस्यमय राजा मतस्य सम्मेद का उल्लेख है . प्रलय के समय मीन ने ही सृष्टि की रक्षा की थी .मिथिला के दरभंगा राज का राज चिन्ह भी मछली था जो उनके सिंहासन , सिंहद्वार, महल , संरचना , किताब / पत्र आदि में भव्यता से अंकित हैं .ईसाई का धार्मिक चिन्ह में भी मछली का उपयोग देखा जाता है . भगवान विष्णु का पहला अवतार मछली है . मिथिला के दरभंगा के राज के राज चिन्ह के नीचे लिखा श्री कृष्ण भगवान विष्णु का हीं द्दोतक है और राज के झंडे का लाल रंग उत्साह , उमंग और नवजीवन का प्रतिक है . मिथिला में विशेषकर हिन्दू धर्म में शादी में वधु लाल रंग की वस्त्र पहनती हैं जो इसी का द्योतक है . मछली वंश बढ़ाने वाली भी मानी जाती है .

Sunday, 14 January 2018

कर्महे तरौनी

मिथिला में हरसिंह देव् के पंजीव्यवस्था समय हमर मूल पूर्वज   तरौनी गाम में रहैत छलाह  जे कर्महे वंशधर संतति छलाह . अहिठाम उल्लेख आवश्यक जे धुरतराज गोनू झा वंशधर पुत्र छलाह . . . परमेश्वर झा अपन पोथी  "मिथिला तत्व विमर्श " में लिखैत छथि महाराज शिवसिंहक रजवाड़ासँ अव्यवहित पश्चिम तरौनी गाम अछि ओहिसमय एहि गाममे बड्ड भारी विद्वान, सिद्ध पुरुष तथा श्रौतस्मतीनिपुण लोक बसैत छलाह जे शिवसिंहक आश्रित भए अनेकों ग्रामोपार्जन कयलनि। विशेषतः कर्महे मूलक श्रोत्रिय ब्राह्मण छलाह। हिनका लोकनीक डीह गामक दक्षिण-पश्चिममे छन्हि संप्रति ओहि डीहकेँ लोक सभ विष्णुपुरी डीह कहैत अछि।कर्महे तरौनी मूल श्रोत्रिय ब्राह्मण में वर्तमान  मे उजान ग्रामवासी मीमांसक श्री योग दत्त प्रभुत तथा अवाम गाम में बाबू श्री भगवान दत्त झा तथा बाबू श्री मनधन झा( वर्तमान मिथिलेश श्री रमेश्वर सिंह , के . सी . आई. . सार ) प्रभृत छवि
मीमांसक पंडित योग दत्त झा (1843--1923) मीमांसा ,योग और धर्मशास्त्र क संगहि आसन पर सेहो हिनकर पकड़ छल l धर्मशास्त्र मे वो " वपनविवेक" क आलेखन केलैथ जे कोन कोन बात पर केस कटेवाक विधान अछि l अहि ग्रन्थ क पुष्पिका मे ओ अपना के मीमांसक लिखला अछि ,हिनक अन्य   प्रकाशित बहुत रास ग्रन्थ अछि जेना अमृतोपदेश , गीतात्र्यप्रकाशिका आदि I बाबू श्री भगवान दत्त झा  और  बाबु श्री  मनधन झा क पिता बाबु घरभरन झा  जिनकर  छोट  पुत्री  ( राजमाता  साहिब  जिनकर सारा पर  दरभंगा  क  माधवेश्वर  मे अन्नपूर्णा  मंदिर अछि ) क  विवाह  मिथिलेश  रमेश्वर सिंह  से  छल ,  संत कवि  छलाह  हिनक पाण्डुलिपि  उपलब्ध  अछि  जे  कबिरवानी  अछि  और  कैथी  लिपि  में  अछि जेकर  प्रकाशन  लेल  कार्य  प्रगति  पर अछि l 
 १५ वीं  शदी मे कर्महे  तरौनी  मूल  क  विष्णुपुरी  झा  के  मोरंग  के  राज दरवार  से  दू टा  गाम  प्राप्त  भेल  छल  वो  सन्यास  धारण  क  लेने  छलाह  और  बहुत  नामवर  कवि  छलाह . सुनवा  में  अछि  जे  वोहि  गाम  क  दानपत्र   बाबू  भगवान  दत्त  झा  क  समयतक  हुनका  जिम्मा  मे छल  और  वो  ओकर  राजस्व  प्राप्त  करयत  छला .    
तरौनी से देवानंद  झा उजान  बसला पंजी मे हिनक उल्लेख  प्रेतपाल  देवानंद   अछि . जनश्रुति  अछि  जे    एकबेर  हुनका  प्रेत    गेल और  अपन  विवाह  करेवा लेल  बाध्यकारी    देल  वो  प्रेत  के  बुझेवा मे सफल भेला  जे  हम  प्रेत  विवाह  पद्धति  नहि जनैत  छी  हमरा  एकर  अध्ध्यन लेल  समय  चाही  I  प्रेत एक आध दिन मे विवाह संपन्न करेवाक वचन    हुनका  सकुशल घर पहुंचा  देलक  . वचन निर्वाह करवा लेल वो भूत- प्रेत - पिशाच विवाह पर अध्ययन प्रेत विवाह पद्धति बना नियत समय पर प्रेत विवाह संपन्न करेला ज्ञातव्य हो कि  मनु विवाह आठ प्रकार मे पिशाच विवाह सेहो उल्लेख केने छैथ  I प्रेत वही दिन से हुनकर सभ तरहे प्रतिपाल / सेवा अप्रत्यझ रुपे करय छल हुनका समक्ष कोनो परेशानी नहि आबय दैन्ह . अहि से सर समाज मे हिनक चर्चा प्रेतपाल देवानंद पड़ल
" An Account Of Maithil Marriage "  जे जर्नल ऑफ़ बिहार & उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी ,पटना वॉल्यूम III , पार्ट IV मे १९१७ मे प्रकाशित अछि   मे  मनु  द्वारा  मान्य आठ  प्रकार  विवाह    उल्लेख  अछि .
  आगू एक शाखा उजान से अवाम आईब गेलाह . बाबू भगवान दत्त झा हमर पितामह छलाह  उजान ग्रामवासी  मीमांसक पंडित योग दत्त संतति वर्तमान में जमशेदपुर में रहैत छैथ और संपर्क में छैथ