Friday 30 June 2017

....त आइ बचि गेल रहिते दरभंगा

हरियर  घास, कारी बाट, कात मे गुलमोहर क गाछ,  लकडी क गेट आ पांच स सात बिग्घा क परिसर मे पीयर-पीयर बंगला कोना बिसरी सकैत छी। दरभंगा क गिरिद्र मोहन मिश्र पथ क इ स्मरण लुटियन दिल्ली आ नूतन राजधानी क्षेत्र पटना क समतुल्य छल। कहल जाइत छै जे पुरान घर खसे आ नव घर उठे, ताहि परिपेक्ष मे देखल जाए त 1934 क भूकंप क बाद खसल पुरान घर क स्थान पर बनल इ नव घर एतबा जल्दी पुरान भ खसि पडत तेकर कल्पना नहि छल। गिरिद्र मोहन मिश्र रोड क एकटा बंगला नंबर 10 स हमर व्यक्तिगत जुडाव रहल। हमर जन्म काल स आइ धरि आंखिक सामने मे एहि सडक आ संपूर्ण मिथिला कए अवसान देखबाक दुर्भाग्य  भेटल। सच पूछू त देखैत देखैत सब किछु बदलि गेल । एकटा खिस्सा जेका लगैत अछि ओ सबकिछु आइ। तहि लेल एकटा खिस्सा जेकां अहां सब लग ओहि विकास क सपना कए रखबाक कोशिश क रहल छी ।
कोनो शहरक विकास लेल पहिने ओकर पिछडापन कए बुझब जरुरी होइत अछि, दरभंगा क विनाश क कारण बुझने बिना एकर आगू क विकास दिशाहीन होएत आ किछु  हद तक संभव सेहो नहि अछि। 1934 मे आयल भयंकर भूकम्प क बाद दरभंगा क तत्कालीन युवा महाराजाधिराज राज एरिया स सटल करीब 87 बीग्घा जमीन रैयत स बाजार दाम स बेसी टका पर अधिग्रहण केलथि आ निश्चित योजना क तहत पैघ पैमाने पर निर्माण कार्य प्रारम्भ कराउल गेल। एहि योजना क अंतर्गत हराही रेलवे स्टेशन (एकर बाद मे दरभंगा स्टेशन नाम द देल गेल) स राज पुस्तकालय तक गिरीन्द्र मोहन रोड क निर्माण भेल। एकर दूनू कात  ‘A’ टाइप बंगला आ एकर दक्षिण बी टाइप क्वार्टर बनल । चौडा रोड क दूनू कात फूटपाथ, स्ट्रीट लाइट ,अंडर ग्राउंड केबल, नल क व्यवस्था कैल गेल, जे ताहि समय मे बिहारक कोनो आन शहर मे उपलब्ध नहि छल। पक्का ड्रेनेज क सेहो निर्माण एहि पहिल कालॉनी मे भेल ताहि कारण स जलजमाव आ कादो एहि ठामक लोग लेल सपना छल ।  बंगला मे प्रवेश करबा लेल दू गोट बाट मुख्य परिसर वृत मे छल जे बंगला क पोर्टिको स गुजरैत छल ।  ओहि रास्ता क काते काते बोतल पम्प क गाछ एखनो मन प्रफुल्लित क दैत अछि । एहि रोड पर एहन कुल ९  टा बंगला छल, जाहि मे तिरहुत सरकार ९ टा  प्रमुख पदाधिकारी रहैत छलाह । सबटा बंगला मे छह  टा पैघ-पैघ कोठली छल । सबटा बंगला मे आउट हाउस आ गैराज आ गाड़ी धोबा लेल वर्क स्टेशन बनल छल । गिरीन्द्र मोहन रोड क उत्तर स्थित बंगला आ दक्षिण स्थित बंगला मे कनि भिन्नता छल । एकटा इंग्लिश स्टाइल क छल जेना ओकर ड्राइंग रूम मे फायर बॉक्स छल । सब आवास मेससर मैकिनटोश बर्न द्वारा भूकंप निरोधी तकनीक स निर्मित कैल गेल छल । आउट हाउस क छत सीमेंट क लाल खपरा (टाइल्स ) क छल, जाहि पर Burn(ब्रुन) खुदाइल छल।  सबटा आवास इंट क चाहरदीवारी आ ओकर उपर लोहा क जाली स घेरल छल । जाली पर लाल रंग क गुची वाला लाटर छल आ ओकर बगल स श्रिष्ट जाहि मे पीयर फूल होइत छल । सड़क स बंगला करीब – करीब नहि देखाइ दैत छल । रोड क कात क गुलमोहर या अमलतास क गाछ गर्मी मे गिरीन्द्र मोहन रोड लाल आ पीयर रंग स पाटि दैत दल । बंगला नंबर 1 मे मोहंगी क गाछ देखबा योग्य छल । इ बंगला गिरिद्र मोहन मिश्र लेल आवंटित छल । बाद मे इ बंगला मे युवराज जीवेश्वर सिंह लेल आवंटित कैल गेल । बंगला नंबर 8 क गेट क समीप मस्जिद अछि । जे गिरिद्र मोहन मिश्र रोड क दरभंगवी संस्कृति कए देखबैत अछि । ओकर आगू करवला अछि । स्टेशन स करवला स सीधा पश्चिम गिरीन्द्र मोहन रोड स होइत पैलेस एरिया जेबाक बाट छल । करवला क दाहिना एक टा पैघ उज्जर द्वार आ लोहा क गेट छल जाहि ठाम स डेनबी रोड A टाइप बंगला नंबर 6 होइत सडक पैलेस एरिया जाइत छल । इ सडक सेहो गिरिद्र मोहन मिश्र रोड जेका सुसज्जित छल । बंगला नंबर 6 स सटल एकटा पार्क छल । एकर अलावा  सी टाइप ,डी टाइप , इ टाइप क्वार्टर छल जे लेक (सरोवर ) क काते काते एक प्रकार स मेरिन ड्राइव  आनंद दैत छल । गिरिद्र मोहन रोड आ डेनबी रोड एहि दूनू कालॉनी क सडक अलग अलग गेट स पैलेस एहिया मे जाइत छल । सबटा ठाम कारी लोहा क मजबूत नक्कशीदार गेट छल । पेलेस एरिया मे जे पहिने धुलभरल बाट छल तेकरा नव निर्माण मे  पक्का आ चौडा सडकक रूप देल गेल छल । तत्कालीन सरकार सरकार अहि  पर कई लाख टका खर्च केने छल । राज परिवार क भांति दरभंगा क आम जनता लेल सेहो एकटा प्लान टाउनशिप विकसित करबाक प्रस्ताव महाराजा कामेश्वर सिंह ब्रिटिश सरकार लग रखलथि आ अपन आर्थिक हिस्सेदारी देबाक प्रस्ताव सेहो ओहि मे सम्मलित केलथि । कामेश्वर सिंह क प्रस्ताव क अनुसार दरभंगा क विकास सुनियोजित तरीका स हेबाक चाही ताहि लेल एकटा दरभंगा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बनाउल जेबाक चाही। एहि संदर्भ मे अगर सरकार कोनो विधेयक विधान परिषद मे अनैत अछि त हमरा खुशी होउत । महाराजा कामेश्वर सिंह क प्रस्ताव पर बिहार व उडिशा  विधान परिषद् मे एहि संर्दभ मे एकटा विधेयक आनल गेल आ काफी बहसक बाद पारित भेल । एहि विधेयक क अनुसार दरभंगा मे बाजार क विस्तार ,रोड क चौरीकरण , पार्क , अस्पताल लेल जगह क आरक्षण, पर्यावरण ,जल निकासी ,जलापूर्ति , बिजली आपूर्ति क समुचित प्रबंध करबाक छल । दरभंगा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बिल ( बिल नंबर 7 /1934 ) बिहार उडिशा विधान परिषद् मे सरकार क दिस स 3 सितम्बर कए  प्रस्तुत कैल गेल । विधेयक पेश करैत मिस्टर डब्लू . बी . ब्रेट अपन संबोधन मे कहला जे भूकंप क बाद दरभंगा क महाराजाधिराज  आगू बढि कए शहरक विकास लेल प्रस्ताव देलथि अछि आ एकरा लेल एकटा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बनेबाक आग्रह केलथि अछि जाहि मे ओ अपन दिस स पैघ राशि देबाक इच्छा प्रकट केलथि अछि। महाराजक एहि प्रस्ताव कए सरकार स्वागत करैत अछि जाहि स शहर क तंग आ संकरी बस्ती कए फेर स एहि रूप मे प्लान क बनाउल जाएत जाहि स दरभंगा क लोक कए  पिछला भूकंप मे जे त्रासदी आ जान-माल क नुकसान भेल ओ नहि भ सकत। दरभंगा कए इम्प्रूवमेंट स्कीम किया चाही एहि संबंध मे काफी बहस भेल । एहि बहस मे ब्रेट कहला जे पिछला भूकंप देखिनिहार अगर इ सवाल करैत छथि त आश्चर्य ।  बहस मे कहल गेल इ गप सही अछि जे इ शहर दू भाग मे बंटल अछि । दरभंगा आ लहेरियासराय, जे काफी खुलल अछि आ मुख्य सडक चौडा अछि, मुदा शहरक पश्चिम भाग जे आन भाग स प्राचीन अछि आ काफी तंग अछि, इ इलाका मुख्य रूप स बाजार क इलाका अछि। बड़ी बाजार स कटकी बाजार होइत गुदरी बाजार तक काफी घना बस्ती अछि आ भूकंप क दौरान एहि ठाम भगदड क संभावना अछि । एहन मे  एहि ठाम लेल इम्प्रूवमेंट स्कीम क सख्त जरुरत अछि ।  भूकंप स पहिने इ काफी घनी भीड़ वाला बाजार छल, जतए संकरी सड़क छल ओहन किछु मजबूत मकान छल,  मुदा अधिकांश पुरान आ छोट – छोट दुकान छल ।  एहि ठाम एतबा भीड रहैत अछि जे दम लेबाक लेल जगह नहि भेटैत अछि ।  एहन मे अगर फेर स ओहन भूकंप भेल त एहि तंग गली मे ओहन घटना घटत जेहन हाल मे आयल भूकंप में मुंगेर मे घटल अछि । लोग घर स निकलत त बाट पर मकान क मलबा मे दबा जायत । कोनो खुलल जगह एहि ठाम नहि अछि । ओना विगत 3-4 मास मे हमरा कईटा सुझाव प्राप्त भेल अछि । किछु सुझाव  नीक छल त किछु अव्यावहारिक । इ सच अछि जे आब पक्का कंक्रीट क घर बनबाक चाही ,किछु सदस्यक कहब अछि जे एहन घर बनए जे भूकंप मे झूलि जाय, मुदा एकटा मुर्ख आदमी क नाते हम मानैत छी जे सबस बेहतर होएत जे भूकंप एला पर लोग दौड़ कए जल्दी स जल्दी खुलल जगह पर आबि जाइथि जतए हुनकर माथ पर कोनो मलबा खसबाक संदेह नहि रहए । मुदा बड़ी बाजार क लोक कए इ सलाह देनाइ मजाक होएत । कल्पना करू जे 10 फुट क सड़क पर हजार स बेसी लोक  एकाएक एला पर के आगू भागी सकत । ककरो लेल बाहर निकलब कठिन हाएत । एहि लेल  जरुरी अछि जे एहि बाजार कए फेर स बनाउल जाये । जाहि मे चौडा रोड बने ।  इ काज इम्प्रूवमेंट स्कीम करत l एकरा जरूरी कहब नम्र शब्द होएत दरअसल इ दरभंगा क लोक लेल जीवन होएत ।
यदि आजुक पीढ़ी कए नहि त निश्चित रूप स हुनकर आगूक पीढ़ी लेल l बहस क अंत निर्णायक नहि रहल आ इ विधेयक एकटा सेलेक्ट कमेटी कए सौंप देल गेल ।  एहि समिति कए बिल पर 7 सितम्बर ,1934 तक रिपोर्ट देबा लेल कहल गेल ।  कमिटी मे श्री सच्चिदानंद सिन्हा , मौलवी शेख मुहम्मद शफी , मौलवी मुहम्मद हस्सन जन , राय बहादुर श्यामानंद सहाय , बाबु चंद्रेश्वर प्रशाद नारायण सिन्हा , मिस्टर डब्लू . जी . लकी और कुमार गंगानंद सिन्हा सदस्य बनाउल गेलाह । सेलेक्ट कमिटी क रिपोर्ट दरभंगा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बिल क पक्ष मे रहल । रिपोर्ट सदन मे राखल गेल त ओहि पर सेहो खूब बहस भेल। 18 सितम्बर 1934 कए आखिरार विधेयक पारित भेल। पारित हेबा स पूर्व  मुहम्मद शेख शफी बिल मे संसोधन क प्रस्ताव दैत कहला जे एहि विधेयक क कॉपी दरभंगा क लोक मे प्रसारित कैल जाय, जेकर विरोध में डा. सच्चिदानंद सिन्हा ठार भेलाह । श्री सिन्हा क संग मौलवी मुहम्मद हस्सन जन सेहो एहि संशोधन क विरोध केलथि । मौलवी हस्सन जन कहला जे  अगर केकरो एहि बिल स असुविधा अछि त ओ एकटा पुनीत कार्य लेल एहि शहर क हित मे एहि असुविधा कए वहन करबा लेल तैयार रहू, नहि त क्षेत्र क प्रगति कहियो नहि भ सकत आ आगू क पीढी लेल अहां खलनायक सिद्ध भ जायब ।  राय बहादुर द्वारिकानाथ जे तिरहुत डिवीज़न नगरपालिका स चुनि कए सदन मे आयल छलाह ओ सेहो एहि बिल क समर्थन केलथि आ कहलथि जे एहन बिल केवल दरभंगा लेल किया आन शहर लेल सेहो एबाक चाही। ओ कहला जे हम एहि विधेयक क विरोध करैत रही मुदा  लोकक अवधारणा जे इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट दरभंगा राज क इशारा पर आनल गेल अछि एकर हम खंडन करैत छी आ इ आरोप बेबुनियाद अछि ।  ओ कहला जे ट्रस्ट बोर्ड क छह सदस्य मे मात्र एकटा सदस्य दरभंगा महाराज कए मनोनीत करबाक अधिकार अछि ।  बाबू निरसु नारायण सिन्हा सेहो बिलक  समर्थन केलथि,बाबू हरेकृष्ण चौधरी कहलथि जे दरभंगाक विकास मे इ मीलक पाथर साबित होएत ।  मौलवी मुहम्मद अब्दुल घनी  पूजा आ इबादत क स्थान कए ल कए प्रस्ताव देलथि जाहि पर सरकार कहलक जे पूजा स्थान यथावत राखल जाएत, चाहे वो सडकक बीच मे किया नहि आबि जाये । बहसक अंत मे डा. सच्चिदानंद सिन्हा दरभंगा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बिल क पुरजोर समर्थन करैत एकरा पास करबाक प्रस्ताव रखलथि । सिन्हा कहलथि जे इ आधुनिक दरभंगा नहि बल्कि आधुनिक बिहार क सपना थीक । ओ कहला जे भारत मे लोक हित मे हमर अमीर लोकनि टका नहि खर्च करैत छथि जेना कि दोसर देश सब क मे अमीर लोकनि खर्च करैत छथि । ओहि देश सब मे लोक भावना अपन देश स बेसी अछि ।  अपन देश मे जतए अधिकांश लोक गरीब अछि धनवान लोकक टका लोक हित मे लगबाक चाही । एहि विधेयक क सराहना एहि गप क लेल सेहो हेबाक चाही । महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह एहि आपदा क समय मे लोकहित मे सराहनीय कार्य केलथि अछि । हुनकर दान क लाभ उठेबाक जरुरत अछि आ ताहि लेल बिल कए पारित करब जरुरी अछि । एकर बाद बिल पास भ गेल ।  ट्रस्ट क चैयरमैन बाबू विशेश्वर सिंह कए बनाउल गेल आ ट्रस्ट अगिला नवम्बर स कार्य करै लागल। ट्रस्ट द्वारा सबस पहिने दरभंगा-लहेरियासराय क हवाई सर्वे कराउल गेल । एहि प्रकार स दरभंगा देशक पहिल शहर बनल जेकर विकासक खाका आसमान मे बनल । कोलोनेल टेम्पले कए दरभंगा टाउशिप विकसित करबाक जिम्मा सौंपल गेल । राज परिसर क बाहर राजपरिसर जेका सुव्यवस्थित नगर बसेबाक चुनौती क अंदाजा टेम्पले कए छल । ओ अपन योग्यता क परिचय देलथि । महाराजा ऑफिस हुनका दरभंगा क प्लान कए अमली जामा पहिरेबा मे काफी मदद केलक । मुदा टेम्पले क सपना पूरा जमीन पर नहि उतरि सकल । 1942 क भारत छोडो आंदोलन आ एकटा नव शासन व्यवस्था प्रर्दुभाव क आहट समाज क अदूरदर्शी लोक सब कए मौका द देलक । योजना क मुख्य केंद्र गोल मार्केट क दरभंगा क एकटा मुख्य कारोबारी विरोध क देलथि । किछु लोग बंगाली टोला स मिथिला कॉलेज कए स्थानांतिक क ओहि बाजार मे आनि देलथि । कटकी बाजार आ बड़ी बाजार गोल मार्केट मे शिफ्ट नहि भ सकल । ओहि दूनू बाजार क सड़क संकरी रहि गेल । एहि प्रकार स चिल्ड्रेन पार्क लेल आरक्षित जगह पर स्कूल खोली देल गेल जखन कि लालबाग मे राज स्कूल लग आमजन लेल पार्क क स्थान आइ धरि मैदान बनल अछि ।  1988 आ 2015 क भूकंप मे फेर स ओ चिंता जताउल गेल । 1988 मे त जानमाल क क्षति सेहो भेल । अजीमाबाद पार्क मे कॉलेज खोलला स दरभंगा शिक्षा क केंद्र त नहि बनि सकल, मुदा जे प्रदेश क एकटा पैघ व्यापारिक केंद्र बनबा क सपना देखैत छल ओ सपना नींद टूटबा स पूर्वहि टूटी गेल..दरभंगा एखन धरि अपन भविष्य क प्रति सचेत भ सुतल अछि । सच कहू त 1934 मे सुव्यवस्थित रूप स बसबा लेल अगर उजरि गेल रहिते दरभंगा, त आइ बचि गेल रहिते दरभंगा । काश..स्मार्ट सिटी की सूची मे आबि गेल रहिते दरभंगा ।


Thursday 29 June 2017

महाराजा रमेश्वर सिंह का ड्रीम लैंड राजनगर


महाराजा रमेश्वर सिंह महाराज लक्ष्मिश्वर सिंह के छोटे भाई थे l महाराज लक्ष्मिश्वर सिंह को  दरभंगा राज की राजगद्दी पर बैठने के बाद रमेश्वर सिंह को दरभंगा राज का बछोर परगना दी गयी और रमेश्वर सिंह ने अपना मुख्यालय राजनगर को बनाया l उनकी अभिरुचि भारतीय संस्कृति और धर्म में था l अपनी अभुरुची के अनुरूप उन्होंने राजनगर में राजप्रसाद का निर्माण कराया जिसकी कोना- कोना  हिन्दू वैभव को दर्शाता था l तालाबों से युक्त  शानदार महलों और भव्य मंदिरों , अलग से सचिवालय ,नदी और तालाबों में सुन्दर घाट जैसे किसी हिन्दू साम्राज्य की राजधानी हो महल में प्रवेश दुर्गा हॉल से होकर था जहाँ दुर्गा जी की सुन्दर मूर्ति थी ,शानदार दरवार हॉल जिसकी नक्कासी देखते बनती थी उससे सटे ड्राइंग रूम जिसमे मृग आसन उत्तर में गणेश भवन जो उनका स्टडी कझ था महल का पुराना हिस्सा बड़ा कोठा कहलाता था महल के बाहर सुन्दर उपवन सामने नदी और तालाब मंदिर के तरफ शिव मंदिर जो दझिन भारतीय शैली का बना था ,उसी तरह सूर्य मंदिर ,सफ़ेद संगमरमर का काली मंदिर जिसमे प्रतिस्थापित माँ काली की विशाल मूर्ती  मंदिर दरभंगा के श्यामा काली के करीब करीब हुबहू  , सामने विशाल घंटा वह भी दरभंगा के तरह हीं   जिसके जैसा पुरे प्रान्त में नहीं था   ,   अर्धनारीश्वर मंदिर .राजराजेश्वरी मंदिर ,गिरजा मंदिर  जिसे देख के लगता था जैसे दझिन भारत के किसी हिन्दू राजा  की  राजधानी हो  l महाराज रमेश्वर सिंह वास्तव में एक राजर्षि थे इन्होने अपने इस ड्रीम लैंड को बनाने में करोड़ों रूपये पौराणिक कला और संस्कृति को दर्शाने पर खर्च किये थे देश के कोने कोने से राजा महाराज ,ऋषि ,पंडित का आना जाना रहता था l जो भी इस राजप्रसाद को देखते थे उसके स्वर्गिक सौन्दर्य को देखकर प्रशंसा करते नहीं थकते थे l प्रजा के प्रति वात्सल प्रेम था जो भी कुछ माँगा खाली हाथ नहीं गया l दरभंगा के महाराज के देहान्त के बाद दरभंगा के राजगद्दी पर बैठने के बाद भी बराबर दुर्गा पूजा और अन्य अवसरों पर राजनगर आते रहते थे l दुर्गा पूजा पर भव्य आयोजन राजनगर में होता था ,मंदिरों में नित्य पूजा - पाठ .भोग ,प्रसाद ,आरती नियुक्त पुरोहित करते थे l १९२९ में दरभंगा में उनका देहांत हुआ और उनके चिता पर दरभंगा के मधेश्वर में   माँ श्यामा काली की भव्य मंदिर है l उनके मृत्यु के बाद राजनगर श्रीविहीन हो गयी और १९३४ के भूकंप में ताश के महल जैसा धराशायी हो गयी लेकिन अभी भी कई मंदिर और राजप्रसाद के खंडहर से पुरानी हिन्दू वैभव की याद आती है इसकी एक एक ईंट भारत के महान साधक की याद दिलाती है l राजनगर जिला मुख्यालय मधुबनी से २० किलो मीटर पूरब में है और दरभंगा से ६० कि.मी .पूरब दझिन में स्थित है l  

Tuesday 27 June 2017

श्री काली माता मंदिर ,पटियाला

श्री काली माता मंदिर ,पटियाला ,पंजाब का दरभंगा से वही सम्बन्ध है जो कप्तान अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री का श्री काली माता मंदिर से है l पटियाला के महाराज भूपेन्द्र सिंह के पोता है पंजाब के  वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह जी l तंत्र को पश्चिमी जगत को परिचित कराने वाले जॉन वुडरुफ्फ़ पेन नाम  आर्थर अवलोन
 जिनकी तंत्र पर लिखी किताब ने पश्चिमी जगत को तंत्र को विज्ञान मानने पर बाध्य कर दिया और लोगों को तंत्र के प्रति आकर्षित किया ने अपनी किताब में यह लिखा है कि १९०८ में तंत्र पर हुए कांफ्रेंस में दरभंगा में महाराजा रमेश्वर सिंह जो एक सिद्ध तांत्रिक थे जिन्होंने बाढ़ से बचाने के लिए अपनी साधना से नदी की दिशा बदल दी थी  और महाराजा भूपेंद्र सिंह जिन्हें महाराज रमेश्वर सिंह ने शाक्त बनाया था भी उपस्थित थे l महाराजा रमेश्वर सिंह माँ काली के बड़े उपासक थे माँ काली श्री दुर्गा के एक रूप हैं अर्गला स्तोत्र में काली के रूप में आया है   और  तंत्र साधना  की देवी है  इन्होने अपने राजप्रसाद राजनगर , पुराना दरभंगा  में काली की उजले संगमरमर की भव्य मंदिर बनाये थे जैसा कहीं देखने को कहीं नहीं मिलती l महाराजा के चिता पर भी माँ श्यामा काली की भव्य मूर्ति स्थापित है l महाराजा के देहांत के बाद १९३६ में  महाराजा भूपेंद्र सिंह जी ने ६ फीट ऊँची श्री काली माता की मूर्ती पावन ज्योति ,कोलकाता , बंगाल से बनवा कर  पटियाला में प्रतिष्ठित करायी जहाँ उन्होंने  बलि प्रदान की थी  l  इस परिसर के बीच में राज राजेश्वरी मंदिर भी है l राजनगर में भी राज राजेश्वरी मंदिर अवस्थित है l दरभंगा में १९३४ के भूकंप के बाद माँ कंकाली की मंदिर सरदार   इन्द्रजीत सिंह ने बनवाया था l महाराजा भूपेंद्र सिंह एक सिख शासक  थे पर उन्होंने  तंत्र के किताब के प्रकाशन संस्था अगम अनुसंधन समिति ,कोलकाता को आर्थिक फंडिंग की थी  जिसके प्रेसिडेंट महाराजा रमेश्वर सिंह थे जिसने तंत्र की  कई पुस्तक जिसमे आर्थर अवेलोन की पुस्तक भी थी प्रकाशित की थी और हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी को  हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण हेतु  लाखों रूपये चंदा दिये था  जिसके  अध्यझ महाराजा रमेश्वर सिंह थे l     उनके द्वारा श्री माता काली का मंदिर का निर्माण उनका दरभंगा  संपर्क था जो  हिन्दू -सिख भाई चारे का अनुपम मिसाल है l यह मंदिर एक भव्य प्रांगन जिसमे सरोवर भी है ,पटियाला सिटी  के मॉल रोड पर बिरादरी गार्डन के सामने  है l

Saturday 24 June 2017

Rameshwar Singh a Sidha Tantrik in the eyes of Arthur Avalon.

The Maharaja of Darbhanga , Rameshewar Singh ,was a fellow disciple of Sivacandra and a renowned tantrik practioner. He was described by the Marquis of Zetland as a notorious Sakta, patron of the temple to the Goddess at Kamakhya where the erotoic ritual was performed . Vasant Kumar Pal refer to him several times ; as sponsor of spectacular tantric puja performed by his guru; as someone who practiced sadhana in the crematoria of Bihar and Bengal alongwith Sivacandra and as sponsor of many of the saint publications . He was a founder and General President of the Sri Bharat Dharma Mahamandal, a neo- conservative Hindu organisation which nevertheless had universalist attitude and sought to make the scriptures available to all casts and to women. His sponsorship of the Tantrik Texts probably reflected this aim . Rameshwar Singh was a colourful character who had a reputation among his subject as a Sidha Tantrik.; he was credited with having changed the course of river through performing sadhana thus diverting a flood.He was called a rajjarshi , a king - rishi . He was relatively unusual in being a member of the princely class who was also a Brahmin , and took a leading role in the movement to present inter- caste marriage and in defence of brahmanical intrests generally. His Kingdom was really no more than a particular large estate but he was extremely wealthy.
The Agamanusandhana Samiti , Calcutta was publishing Company set up specially for the Tantrik Texts, though it may have owned copywright of the some other books as well. Its publicity leaflet, mentioned above reveals it to have had directly propaganda purpose , specifically aimed at the English
educated Indian public. Its President , the Maharaja of Darbhanga, seems to have been the main financial sponsor after Woodroffe's departure and was suceeded on his death in 1931,by his son who took over as President.

Tuesday 20 June 2017

तांत्रिक महाराजा





महाराजा रमेश्वर सिंह जिनके चिता पर दरभंगा (मिथिला ) में श्यामा काली की भव्य मूर्ति स्थापित है ,भारत के महान साधक थे l  वे असम के कामख्या मंदिर के प्रेसिडेंट थे और असम में  हुए १८९८ के भूकंप से हुए क्षतिग्रस्त मंदिर का निर्माण कराये थे l वे एक उदार राजा थे जरूरतमंद को मदद करते थे l उनकी अदम्य इच्छा थी कि  तंत्र के वैज्ञानिक  पहलु को लोग  समक्षे l इसी निमित  १९०८ में उन्होंने  तंत्र के सभी प्रमुख विद्वानों का कांफ्रेंस दरभंगा में  आयोजित किये थे जिसमे विद्वान ब्राह्मण ,महान साधक और वैज्ञानिक उपस्थित हुए थे l वैधनाथ धाम के पंडित प्रकाश नन्द झा ,काशी के पंडित शिवचरण भट्टाचार्य , श्रीविद्या साधक पंडित सुब्रमन्यम शास्त्री , जॉन वुडरोफ्फ़ अगम अनुसंधान समिति कोलकाता  के प्रेसिडेंट प्रमुख थे   वह जॉन वुड रुफ्फ़ थे जिन्हें तंत्र ज्ञान और रहस्य को पश्चिमी जगत को रूबरू कराने का श्रेय जाता है उनके साथ इवान स्टीवेंसन ,  ब्रिटेन के महान चिकित्सक और वैज्ञानिक जिनका नाम विलियम होप्किंसों भी आये थे . इस अवसर पर महाराजा रमेश्वर सिंह के मित्र पटियाला के महाराज भूपेंद्र सिंह  भी  आये थे  वे भी देवी शक्ति  के  बड़े  साधक  हो गये थे  l  महाराजा  स्वंय  अपने  मेहमान को नजदीक के  स्थान  भगवती उग्रतारा पीठ  , महिषी ले गये थे  l  
महाराजा रमेश्वर सिंह ,दरभंगा ,मिथिला एक असाधारण देवी रहस्य के जानकार और साधक तथा देवी रहस्य के विज्ञान और तकनिकी के प्रतिपादक  थे .के प्रति दिन का रूटीन था कि वे २ बजे पूर्वाहन में उठकर बिछावन पर हीं दुर्गा सप्तसती का पूरा पाठ पूर्ण करने के उपरांत ३.३० बजे स्नान करने के बाद संध्या वंदन और सहस्त्र गायत्री जप तदुपरान एक मन चावल से पिण्ड दान फिर ब्रह्म मुहूर्त में पार्थिव शिवलिंग की पूजा के बाद देवी भगवती के मंदिर के लिए प्रस्थान करते थे वहां तांत्रिक विधि से तंत्र  संध्या ,पात्रस्थापन के बाद भगवती  काली की उपासना  आवरण पूजा ,जप ,पञ्चांग पाठऔर उसके बाद पुष्पांजलि के साथ ककरदी  सहस्त्रनाम उसके बाद कुमारी ,सुवासिनी , बटुक का पूजन तर्पण और महाप्रसाद लेने के बाद एक घंटा आराम के बाद ११ बजे से ३.३० बजे तक  राजकाज  देखते थे l उसके बाद स्नान करने के बाद  वैदिक संध्या वंदन और गयात्री जप और प्रदोष समय के अन्तराल में पार्थिव पूजा संपन्न करते थे l रात्रि में वे सांगोपांग निशार्चन ,१०८ ब्राह्मण सामूहिक रूप से दुर्गा सप्तसती का पाठ और ५१ ब्राह्मण से  रुद्राभिषेक संपन्न कराते थे l महाराजा अपनी पूरी जीवन महानुष्ठान में परिवर्तित कर दिये थे l वे काफी पढ़े लिखे और महान विद्वान थे l अंग्रेजी ,फ्रेंच ,बंगाली , मैथिलि ,हिंदी ,संस्कृत ,फारसी  के विशेषज्ञ थे l वे तंत्र विज्ञान के मास्टर के साथ वेदान्त, सांख्य योग . व्याकरण के अच्छे जानकार थे l   
 तीन- चार दिनों के इस भ्रमण में विदेशी विद्वानों ने तंत्र साधना के वैज्ञानिक सत्य को आत्मसात करना प्रारम्भ कर दिया था। इसलिए आज प्रातः इस विशेष सम्मेलन का प्रारम्भ हुआ तो वे भी उत्साहपूर्वक भागीदारी कर रहे थे। इसकी अध्यक्षता का भार पं. शिवचन्द्र भट्टाचार्य पर था, जिन्होंने स्वयं महाराज को तन्त्र साधना के लिए विशिष्ट मार्गदर्शन दिया था। इसी के साथ वह जॉन वुडरफ के भी दीक्षा गुरु थे। महाराज जी की प्रेरणा से ही सर जॉन वुडरफ ने पण्डित शिवचन्द्र भट्टाचार्यसे शक्ति साधना की दीक्षा ली थी। वह कह रहे थे- तन्त्र दरअसल सृष्टि के विराट अस्तित्त्व में एवं व्यक्ति के स्वयं के व्यक्तित्व में प्रवाहित विविध ऊर्जा प्रवाहों के अध्ययन- अनुसन्धान एवं इनके सार्थक सदुपयोग का विज्ञान है। तंत्र मानता है कि जीवन एवं सृष्टि का हर कण शक्ति से स्पन्दित एवं ऊर्जस्वित है। यह बात अलग है कि कहीं यह शक्ति प्रवाह सुप्त है तो कहीं जाग्रत्। इस शक्ति की अभिव्यक्ति यूं तो अनन्त रूपों में है, पर इसकी मूलतः दशमहाधाराएँ हैं, जिन्हें दश महाविद्या कहा जाता है। 
         पं. शिवचन्द्र भट्टाचार्य तन्त्र के मूलभूत वैज्ञानिक सत्य को उद्घाटित कर रहे थे। वे बता रहे थे कि विराट् ब्रह्माण्ड में प्रवाहित ये शक्ति प्रवाह व्यक्ति में प्राण प्रवाह के रूप में प्रवाहित हैं। ब्रह्माण्ड में इन्हीं प्रवाहों से सृष्टि सृजन हुआ है। इसी के साथ उन्होंने निवेदन किया कि व्यक्ति में प्राण प्रवाह के रूप में प्रवाहित इन शक्ति धाराओं का स्वरूप विवेचन महाराज रमेश्वर  सिंह करेंगे एवं ब्रह्माण्ड व्यापी इनके स्वरूप की विवेचना स्वयं महापण्डित सुब्रह्मण्यम् शास्त्री करेंगे। आचार्य शिवचन्द्र के इस निर्देश को थोड़ा संकोचपूर्वक स्वीकारते हुए महाराज उठे। उनका भरा हुआ गोल चेहरा, रौबदारमूँछे, औसत कद, गेहुँआ रंग, माथे पर श्वेत भस्म का ऊर्ध्व तिलक उन्हें भव्य बना रहे थे। 
        उन्होंने कहना प्रारम्भ किया- योग शास्त्र में वर्णित पाँच प्राण एवं पाँच उपप्राण ही दरअसल व्यक्ति के अस्तित्त्व में व्याप्त दश महाविद्याएँ हैं, जो व्यक्ति को विराट् से जोड़ती हैं। इनमेंआदिविद्या महाकाली एवं तारा अपान एवं इसके उपप्राण कूर्म के रूप में जननेन्द्रिय में वास करती हैं। षोडशी एवं भुवनेश्वरी प्राण एवं इसके उपप्राण नाग के रूप में हृदय में स्थित है। भैरवी एवंछिन्नमस्ता उदान एवं देवदत्त के रूप में कण्ठ स्थान में निवास करती हैं। धूमावती एवं बगलामुखीसमान एवं कृकल के रूप में नाभि प्रदेश में स्थित हैं। मातंगी एवं कमला व्यान एवं धनञ्जय के रूप में मस्तिष्क में अवस्थित हैं। ऐसा कहकर महाराज थोड़ा रूके और बोले- मैंने महामाया के इन रूपों का स्वयं में इसी तरह से साक्षात्कार किया है। 
        महाराज के अनुभव परक ज्ञान ने सभी को विमुग्ध किया। आचार्य शिवचन्द्र का संकेत पाकर महाराज के बैठने के पश्चात् महापण्डित सुब्रह्मण्यम् शास्त्री उठे। इन्होंने अभी कुछ वर्षों पूर्व महाराज रमेश्वर  सिंह को तन्त्र साधना की साम्राज्य मेधा नाम की विशिष्ट दीक्षा दी थी। उनका स्वर ओजस्वी था, उन्होंने गम्भीर वाणी में कहना प्रारम्भ किया- इस अखिल ब्रह्माण्ड में आदिविद्यामहाकाली शक्ति रात्रि १२ से सूर्योदय तक विशेष सक्रिय रहती हैं। ये आदि महाविद्या हैं, इनके भैरव महाकाल हैं और इनकी उपासना महारात्रि में होती है। महाविद्या तारा के भैरव अक्षोम्य पुरुष हैं, इनकी विशेष क्रियाशीलता का समय सूर्योदय है एवं इनकी उपासना का विशेष समय क्रोधरात्रि है। षोडशी जो श्रीविद्या है, इनके भैरव पञ्चमुख शिव हैं। इनकी क्रियाशीलता का समय प्रातःकाल की शान्ति में है। इनकी उपासना काल दिव्यरात्रि है। चौथी महाविद्या भुवनेश्वरी के भैरव त्र्यम्बकशिवहैं। सूर्य का उदयकाल इनका सक्रियता काल है। इनकी उपासना सिद्धरात्रि में होती है। पाँचवीमहाविद्या भैरवी है इनके भैरव दक्षिणामूर्ति हैं। इनका सक्रियता काल सूर्योदय के पश्चात् है। इनकी उपासना कालरात्रि में होती है। छठवी महाविद्या छिन्नमस्ता है, इनके भैरव कबन्धशिव हैं। मध्याह्न सूर्य का समय इनका सक्रियता काल है, इनकी उपासना काल वीररात्रि है। 
         धूमावती सातवीं महाविद्या हैं, इनके भैरव अघोररूद्र हैं। मध्याह्न के पश्चात् इनका सक्रियता काल है एवं इनकी उपासना दारूण रात्रि में की जाती है। बगलामुखी आठवी महाविद्या हैं, इनके भैरवएकवक्त्र महारूद्र हैं। इनकी सक्रियता का समय सायं हैं। इनकी उपासना वीररात्रि में होती है। मातंगीनौवीं महाविद्या है, इनके भैरव मतंग शिव हैं। रात्रि का प्रथम प्रहर इनका सक्रियता काल है। इनकी उपासना मोहरात्रि में होती है। भगवती कमला दशम महाविद्या है। इनके महाभैरव सदाशिव हैं, रात्रि का द्वितीय प्रहर इनका सक्रियता काल है। इनकी उपासना महारात्रि में की जाती है। इन दशमहाविद्याओं से ही सृष्टि का व्यापक सृजन हुआ है। इसलिए ये सृष्टिविद्या भी हैं। 
          इसी के साथ महाराज द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में तन्त्रविज्ञान की व्यापक परिचर्चा होते- होते सांझ हो आयी। महाराज की विशेष अनुमति लेकर उनकी सायं साधना के समय जॉन वुडरफ के साथ आए वैज्ञानिकों ने महाराज का विभिन्न यंत्रों से परीक्षण किया। इस परीक्षण के बाद उन्हें आश्चर्यपूर्वक कहना पड़ा- कि तन्त्र साधक में प्राण विद्युत् एवं जैव चुम्बकत्व सामान्य व्यक्ति की तुलना में आश्चर्यजनक ढंग से अधिक होता है। उनके इस कथन पर महाराज रमेश्वर  सिंह हँसते हुए बोले- दरअसल यह दृश्य के साथ अदृश्य के संयोग के कारण है। इसका वैज्ञानिक अध्ययनज्योतिर्विज्ञान के अन्तर्गत होता है।