Wednesday 30 August 2017

बागमती के किनारे आम और लीची बागान सहित ६१ बीघा जमीन महाराजा कामेश्वर सिंह ने मिथिला रिसर्च इंस्टिट्यूट के स्थापना के लिए दान दिए . उक्त इंस्टिट्यूट की स्थापना देश के प्रथम राष्ट्रपति डा . राजेंद्र प्रसाद के करकमलों द्वारा १९५१ में दरभंगा के कबराघाट के महेशनगर परिसर में हुआ . महेशनगर के नाम को लेकर एक मजेदार  वाकया है .उन दिनों बिहार सरकार में एक मंत्री महेश सिंह हुआ करते थे . लोगों को महेशनगर उनके नाम पर होने की ग़लतफ़हमी हो गयी जिसको लेकर तत्कालीन सी ऍम श्री कृष्ण सिंह खुश नहीं थे . सी ऍम के ग्रुप ने महेश सिंह के नाम पर इस इंस्टिट्यूट का नाम रखने पर विधान सभा में क्वेश्चन किया जब बतलाया गया कि महेश नगर महाराज के पूर्वज म म महेश ठाकुर के नाम पर है तो विधान सभा में हंसी फुट पड़ी थी .
कोर्ट ऑफ़ वार्डस के दौरान महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह मात्र दो साल के थे उन्हें  बहुत ही योग्य  सहृदय इंग्लिश शिझक मिस्टर चेस्टर मैनहटन ( Macnaghten ) से शिझा मिली . चेस्टर  को उसके बाद राजकुमार कॉलेज , राजकोट का पहला प्रिंसिपल बनाया गया . यह राजकोट के केंद्र में स्थित है। राजकुमार कॉलेज, इस शहर का सबसे पुराना कॉलेज और शिक्षा केंद्र है। इसकी स्‍थापना, कठियावाड शाही परिवार के युवाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से की गई थी ताकि वह सफल शासक और अच्‍छे इंसान बन सकें। यह कॉलेज 1868 में अस्तित्‍व में आया और आधिकारिक तौर पर इसका उद्घाटन 1870 में किया गया.यह २६ एकड़ में है . इसमें पोरबंदर , कच्छ , भावनगर , नवानगर के महाराजकुमार ने शिझा ग्रहण की . महाराजा रंजीत सिंहजी (क्रिकेट ) भी विद्यार्थी रहे . वर्तमान में इसकी फ़ीस ४- ६ लाख प्रति वर्ष है .

महाराज लक्ष्मिश्वर सिंह की स्टेचू

उग आये पत्तों की झुरमुट और बी  डी डी  बाग़ पर लगातार ट्रैफिक इसे दृश्य से ओझल करता है फिर भी यदि मौका मिले तो जरा ठहर कर कोलकाता के डलहौज़ी स्क्वायर के दझिण - पश्चिम कोना में दरभंगा के महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह की स्टेचू को जरूर देखें . प्रशंसा किया बिना नहीं रहेंगें .  यह सफ़ेद संगमरमर की मूर्ति अन्य मूर्ति से अलग है . अन्य मूर्ति जहाँ खड़ी मुद्रा में है वहीँ यह पलथी मार कर अलंकृत सिंहासन पर दाएं हाथ में तलवार , बांये में ढाल , शिर पर पारिवारिक रत्न से सजी पाग तथा गले में भारत साम्राज्य का शूरवीर नाईट कमांडर का चेन पहने हुए है . एक एक विवरण बखूबी तरासी हुई जो इस मूर्ति को कला के झेत्र में अनुपम बनाती है . दूसरी खूबी यह प्रख्यात ब्रिटिश मूर्तिकार एंड्रू ओस्लो फोर्ड का इंडिया में निर्मित दो मूर्ति में से एक  ज्ञ है .  एक घोड़े पर सवार मैसूर के महाराज वादियर चमराजेंद्र X की है जो पहले कर्ज़न पार्क के सामने थी जो  अब बंगलोर के लालबाग बोटैनिकल गार्डन में है l लंदन में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री ग्लेडस्टोन की खड़ी मूर्ति उनके द्वारा निर्मित काफी चर्चित रहा है .  कोलकाता के ४२ चौरंगी के दरभंगा के महल के रियल स्टेट के कंपनी द्वारा खरीदने और तोड़ दिए जाने के बाद यही स्टेचू सिटी ऑफ़ जॉय से सिटी ऑफ़ पोंड , दरभंगा का रिस्ता बताने को शेष हैं .इस मूर्ति का अनावरण २५ मार्च १९०४ को बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंड्रू फ़्रेज़र द्वारा सर गुरुदास बनर्जी (जो कोलकाता यूनिवर्सिटी जे पहले भारतीय कुलपति थे तथा बंगाल हाई कोर्ट के जज थे ) , राजा पियरे मोहन मुखर्जी जो लक्ष्मीश्वर सिंह के साथ हीं शाही परिषद् के सदस्य थे की गरिमामयी उपस्थिति में हुई . महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह के वारे में कलकत्ता ओल्ड एंड न्यू के लेखक H. E. A. COTTON  की चर्चित किताब जिसने सभी किताबों का रिकॉर्ड तोड़ दिया ने कहा है कि ये पूर्व और पश्चिम की विशेषताओं को सफलतापूर्वक जोड़ने का काम किये . हमें अपने ऐसे बिभूतियों पर गौरव करनी चाहिए जिनकी चर्चा पूर्व से लेकर पश्चिम तक है उनके सम्मान से दरभंगा का मान बढ़ेगा इसे हमें याद रखना होगा .

Saturday 22 July 2017

सी . राजगोपालाचारी और दरभंगा राज

    महाराजा कामेश्वर सिंह की सम्पतियों ,कीर्ति  के बारे में आप सभी परिचित होंगे।  मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से उनके विचारों जो उन्होंने १९३४ के भूकम्प के महात्रासदी के समय इंडिया पोस्ट को दिये  इंटरव्यू ,हिन्दू यूनिवर्सिटी और कौंसिल ऑफ़ स्टेट के सम्बोधन  को आप के बीच रखा।हम उन्हें दरभंगा के महाराजा के रूप में जानते हैं लेकिन वास्तव में एक सच्चे राष्ट्र भक्त और देश के अग्रणी राजनेता थे , कांग्रेस को मजबूत करने,गोलमेज कॉन्फ्रेंस में भाग लेने ,संविधान सभा के सदस्य और कौंसिल ऑफ़ स्टेट ,राज्य सभा के सदस्य के रूप में गहरा योग्यदान था ,गांधीजी ,राजेंद्र प्रसाद जैसे देश के प्रमुख नेता से उनके तालुकात थे। आजादी के बाद    उनके कांग्रेस से मतभेद  थे जो पारम्परिक मूल्य को बरक़रार रखने को लेकर और स्वतंत्र कल -कारखाने  और निजी स्वामित्व को लेकर था।   कांग्रेस से अलग होकर सी राजगोपालाचारी( जो मौन्टबेटेन के बाद पहले भारतीय गवर्नर जनरल बने ,पटेल के बाद गृह मंत्री ,मद्रास के पहले मुख्यमंत्री) ने कांग्रेस के नागपुर सेशन के  तुरंत  बाद मद्रास में सन १९५९  में महाराजा कामेश्वर सिंह की परिकल्पना पर कांग्रेस के नीति के विरोध में स्वतंत्र पार्टी के निर्माण की घोषणा की। तो आये जाने ---                                                                                                                                                                       C. Rajagopalachari: Biography from Answers.com

Friday 7 July 2017

जब बिहार ने झेला बंटवारे का दंश

 १९१२ में बंगाल से पृथक बिहार और उड़ीसा राज्य बना जिसकी राजधानी पटना बना l इस राज्य को बनाने में दरभंगा के रमेश्वर सिंह का काफी योग्यदान रहा था l फिर १९३६ में बिहार से उड़ीसा अलग राज्य बना और पोर्ट विहीन हो गया यानि समुद्र से किनारा हो गया और अब झारखण्ड के पृथक होने से खनिज संपदा से विहीन l जब बिहार से झारखण्ड अलग हो रहा था  उस समय मैं  बिहार विधान परिषद् का कर्मी था और झारखण्ड विधान सभा में योग्यदान देने के लिए रांची  गया था I बिहार से जुदा होने के वक्त काफी दुखी था, सुनहले भविष्य  की  कल्पना थी,१८ नवम्बर २००० को एक भव्य समारोह में विधान परिषद् के १११ कर्मचारी /पदाधिकारी  को दिनाक १९ नवम्बर २००० के अपराह्न से विरमित करते हुय निदेश दिया गया कि पदग्रहण काल का उपयोग किय बिना ही दिनांक २१.११. २००० तक झारखण्ड विधान सभा सचिवालय में योग्यदान कर लें लेकिन हमलोगों को झारखण्ड में योग्यदान नहीं हो सका हमलोगों ने विशेषकर बिहार के निवासी ने राहत कि साँस ली और वापस बिहार विधान परिषद् में योग्यदान दिया उस समय हमलोगों ने बिहार से जुदा होने का दर्द महसूस किया जो आज भी जेहन में है I बिहार के लिए आत्मीयता और अधिक  बढ़ गयी और २००२ के दिसम्बर में एक आलेख लिखा जो  HT PATNA Live के 6 जनवरी 2003 के अंक में प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था  'नॉट ए बास्केट केस'-
 "BIHAR,THE land of Lord Budha and Bhagwan Mahavir has today earned the reputation of a land of crime and corruption.The very reputation has proved a millstone around its neck.The recent outbursts of two senior Government officials( both of being Bihari) clearly reflect the inner feelings of Bihar is about the present scenario in Bihar,
  This is just a small crack .The Year 2003 will witness spontaneous reaction of the masses to the spectra  of crime and corruption looming large over Bihar and eagerness to work for a fundamental change in the entire system to regain for the state its lost glory . The Chankya brain will be applied not only to the politics but also to the matters concerning the states economy.
I hope in 2003 Bihar will emerge as a place of living community ,which has the motivation and the capability to act fundamental changes in crucial spheres .
 Opening of Gaya International Airport has given the single that tourism industry will flourish in 2003.Places of the historical value ,such as Bodh Gaya,Rajgir,Nalanda,Pawapuri,Vaishali will attract global tourists.Importance of Information Technology has been recognized by the State Government and the decision to establish an IT Park is certainly a step forward in the development of the IT sector in 2003.The fertile lands of the state can be used to fillip to the agro based industries,World famous Madhubani Painting,Handloom,Tasar Silk,Lichhi and Makhana will attract foreign direct investment (FDI).
The people of Bihar are industrious.Its labor force has established its reputation for hard work not only inside the country but even outside it, Far away places like,Fiji,Suriname,and Mauritious .In this era of tough competition ,the student of Bihar are emerging victorious in their respective field.
Lets hope positive aspects of Bihar get highlighted in the media in the new year and help retrieve its lost image of a state on the move.
A land of such great potentialities with its reservoir of hard working and industrious labour and intellectuals besides a rich historical background will certainly raise from its present stupor to lead the nation as it did in the ancient times.Sooner or later ,we will be proud to be called Bihari."
बिहार कोमा से निकल विकास के मार्ग पर अग्रसर है ,बिहारी की श्रम शक्ति ,बुद्धिमत्ता  तथा बिहार की एतिहासिक ,धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पुरे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करने में सझम हैI इस भूमि ने सीता को जन्म दिया है यह पावन भूमि शिखर पर जाएगी और देश-दुनिया को एक नयी दिशा देगी I  

Wednesday 5 July 2017

कमला

   
जय जय जगजननि भवानी त्रिभुवन जीवन - रूप। 
हिमगिरिनन्दिनि थिकहुँ दयामय कमला कालि स्वरुप।। 
विधि हरि हर महिमा नहि जानथि वेद न पाबथि पार। 
आनक कोन कथा जगदीश्वरि विनमौ बारंबार।।
पूर्वज हमर जतय जे बसला आश्रित केवल तोर। 
श्रीमहेश नृप तखन शुभंकर किंकर भए तुअ कोर।।
विद्या धन निधि विधिवश पबिअ माधवसिंह नरेश।
वागमती तट भवन बनाओल दरभंगा मिथिलेश।।
हमरहु जखन राज सँ भेटल अंश अपन तुअ पास। 
पूर्ण आश धए तृणहिक धरमे कएलहुँ जननि निवास।।
क्रमिक समुन्नति शिखर चढ़ाओल करुणामयि जगदम्ब। 
राज - दार तनया देल सुत - युग राजभवन अविलम्ब।।
वागमतीक त्याग तुअ देखिअ राजनगर तुअ वास। 
राजक केन्द्र प्रधान बनाओल तुअ पद धरि विश्वास।।
सम्प्रति जलमय जगत बनाओल लीला अपरम्पार। 
राजनगर निज रक्षित राखल ई थिक करुण अपार।।
करब प्रसन्न सेवन सँ अंहकेँ ई नहि अछि अब होश। 
वसहज प्रमोद जननि करू सुत पर एकरे एक भरोस।।
जखन शरीर सबल छल तखनहु सेवत नहि हम तोहि। 
अब अनुताप - कुसुम अंजलि तजि किछु नहि फुरइछ मोहि। 
कर युग जोड़ि विनत अवनत भए करथि रमेश्वर अम्ब। 
सत चित आनन्द - रूप - दान मे करब न देवि विलम्ब।।
                                      म ० रामेश्वर सिंह 

Saturday 1 July 2017

भारत के महान साधक

तिरहुत सरकार महाराजा महेश्वर सिंह का देहान्त १८ ६ ० में जब हुआ उस समय उनके दोनों पुत्र बहुत छोटे थे बड़े सरकार लक्ष्मिश्वर सिंह  का उम्र २ साल  और छोटे सरकार रमेश्वर सिंह का एक साल भी पुरे नहीं हुए थे l अंग्रेजी हुकूमत ने मिथिला के इस राज  को  वार्ड  ऑफ़ कोर्ट के अधीन ले लिया और  युवराज लक्ष्मिश्वर सिंह  को अपने देखरेख में  और माता से भी मिलने पर पाबन्दी लगा दी l  अंग्रेजी शिझक  प्रमुख शिझाविद मिस्टर चार्ल्स मैकनाघटेन (Macnaghten), मिस्टर  जे . एलेग्जेंडर और कैप्टेन एवंस गॉर्डोन   का बंदोबस्त कर दिया l दरभंगा राज के वे दोनों भाई  पहले राजा हुए जिन्हें अंग्रेजी तालीम दी गयी  और राज का शासन  १८८० तक अंग्रेजों के अधीन होने लगा और  माता के विरुद्ध अंग्रेजी शिझक से पढाई दी जाने लगी l राजमाता ने इसका कड़ा विरोध किया और युवराज का स्थानीय अभिभावक युवराज के निकटतम चाचा को बना दिये जिन्होंने अपनी संस्कृति के अनुरूप  शिझा-दिझा संस्कृत के प्रमुख विद्वानों द्वारा   दोनों राजकुमारों  को देने की  अलग से  व्यवस्था की l  बाद में देश की धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी बनारस के क़ुईन्स कॉलेज में पढाई की  जिसका फलाफल हुआ कि रमेश्वर सिंह संस्कृत एवं हिन्दू संस्कृति के तरफ आकर्षित हुए और  ब्राह्मण  संस्कृति के अनुरूप पूजा पाठ और   आध्यात्म  उनकी पहली अभिरुचि हुई l अंग्रेजी ,फारसी  में भी उनकी अच्छी पकड़   थी l बालिग होने पर बड़े भाई लक्ष्मिश्वर सिंह दरभंगा  महाराज की गद्दी पर  आसीन हुए  और राजा रमेश्वर सिंह  १८७८ में  भारतीय सिविल सेवा में चले गये और दरभंगा , छपरा और भागलपुर में असिस्टेंट मजिस्ट्रेट रहे  l इसी दौरान ब्रिटिश हुकूमत के अंग्रेज पधाधिकारियों से मित्रता हुई जिन्हें वे हिन्दू संस्कृति ,अध्यात्म के विषय में जानकारी दी और अंग्रेज के आधुनिक औद्योगिक ,व्यापार ,तकनिकी की जानकारी प्राप्त की l उन पदाधिकारियों में जॉर्ज ग्रिएरसन (प्रमुख भाषा शास्त्री ) , इ .ए. गेट  जो बाद में नवनिर्मित  बिहार राज्य  के उप राज्यपाल हुए  आदि जो उनके सहकर्मी थे यानि भारतीय सिविल सेवा के पदाधिकारी l  उन्हें दरभंगा से दूर बछोर परगना दिया गया l इन्होने राजनगर में अपना राज प्रसाद बनाया  जिसकी भव्यता राजा जनक की राज की याद दिलाती थी l दरभंगा के महाराज बड़े भाई लक्ष्मिश्वर सिंह की मात्र ४० वर्ष की आयु में मृत्यु के बाद १८९८ में ३८ वर्ष की आयु में दरभंगा की राजगद्दी पर आसीन हुए तबतक उन्हें कोई संतान की प्राप्ति नहि हुई थी l उन्होंने कामरूप कामख्या  में  संतान की प्राप्ति हेतु तंत्र साधना की थी जिसके बाद उन्हें तीन संतान की प्राप्ति हुई l  उनका काफी समय आध्यात्म और पूजा पाठ में व्यतीत होता था l दरभंगा राज का कामकाज काफी विस्तृत रहने के कारण सिविल सेवा से त्यागपत्र देकर अपना पूरा समय मिथिला राज ,हिन्दू संस्कृति ,आध्यात्म में देने लगे l हिन्दू संस्कृति को देशभर में फ़ैलाने के लिए  दि हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी ,आध्यात्म के फ़ैलाने हेतु अगम अनुसंधान समिति कोलकाता  जो संस्कृत के ग्रंथों का अंग्रेजी अनुवाद कर प्रकाशित करती थी ,  धर्म को देशभर में फ़ैलाने हेतु भारत धर्म महामंडल जिसका मुख्यालय बनारस था और देश के सभी जगह इसकी ब्रांच कार्यालय थी  और मैथिलि के लिए मैथिल महासभा की स्थापना कर देश में अंग्रेजी शिझा  और सभ्यता को एक तरह से चुनौती देने का काम किये और राष्ट्रवाद को एक ताकत दी l हिन्दू राजाओं यथा नेपाल ,ग्वालियर ,कश्मीर ,जयपुर  उन्हें अपने  धार्मिक और  अध्यात्मिक गुरु के रूप में देखते थे  और उनपर श्रद्धा रखते थे  l सिख शासक महाराजा पटियाला से जहाँ उनकी  मित्रता थी वहीँ बोम्बे के आगा खां उनकी आगवानी करते थे l  हिन्दू ,सिख ,जैन , मुसलमान धर्म के  माने हुए प्रमुख व्यक्ति के प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व किये और कोलकाता और इल्लाहाबाद में हुए  सभी धर्मो और संप्रदाय के बीच एकता हेतु पार्लियामेंट ऑफ़ रिलिजनस की बैठक की सभापतित्त्व किये l   पहली आल -इंडिया ब्राह्मण कांफ्रेंस ,लाहौर की सभापतितव किये l   देश के कई हिस्से में कल कारखाने लगा कर औद्योगिक क्रांति की आगाज की l   वहीँ खेती के विकास के लिए  देश के जमीन मालिकों  का एक देशव्यापी  संगठन बनाये l मिथिला राज्य की मांग करते हुए बिहार के राज्यपाल के माध्यम से दी गयी ज्ञापन में उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किये कि उन्हें लौकिक के साथ आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त हैl इन्होने अपनी अध्यात्मिक शक्ति से नदी की दिशा बदल दी थी जिसका  उल्लेख बंगाल उच्च न्यायलय के जज जॉन वुडरुफ्फ़ ने अपनी पुस्तक (BENGAL AND TANTR) में की है l उनके तीन प्रमुख संस्था दि हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी ,भारत धर्म महामंडल और अगम अनुसंधान समिति क्रमशः ऍम . ऍम . मालवीय ,गोपाल कृष्ण गोखले ,दीनदयाल शर्मा ,आर्थर अवलोन के  द्वारा  संचालित होता था जिसके महाराज रमेश्वर सिंह संस्थापक अध्यझ एवं मुख्य वित् पोषक थे l  

Friday 30 June 2017

....त आइ बचि गेल रहिते दरभंगा

हरियर  घास, कारी बाट, कात मे गुलमोहर क गाछ,  लकडी क गेट आ पांच स सात बिग्घा क परिसर मे पीयर-पीयर बंगला कोना बिसरी सकैत छी। दरभंगा क गिरिद्र मोहन मिश्र पथ क इ स्मरण लुटियन दिल्ली आ नूतन राजधानी क्षेत्र पटना क समतुल्य छल। कहल जाइत छै जे पुरान घर खसे आ नव घर उठे, ताहि परिपेक्ष मे देखल जाए त 1934 क भूकंप क बाद खसल पुरान घर क स्थान पर बनल इ नव घर एतबा जल्दी पुरान भ खसि पडत तेकर कल्पना नहि छल। गिरिद्र मोहन मिश्र रोड क एकटा बंगला नंबर 10 स हमर व्यक्तिगत जुडाव रहल। हमर जन्म काल स आइ धरि आंखिक सामने मे एहि सडक आ संपूर्ण मिथिला कए अवसान देखबाक दुर्भाग्य  भेटल। सच पूछू त देखैत देखैत सब किछु बदलि गेल । एकटा खिस्सा जेका लगैत अछि ओ सबकिछु आइ। तहि लेल एकटा खिस्सा जेकां अहां सब लग ओहि विकास क सपना कए रखबाक कोशिश क रहल छी ।
कोनो शहरक विकास लेल पहिने ओकर पिछडापन कए बुझब जरुरी होइत अछि, दरभंगा क विनाश क कारण बुझने बिना एकर आगू क विकास दिशाहीन होएत आ किछु  हद तक संभव सेहो नहि अछि। 1934 मे आयल भयंकर भूकम्प क बाद दरभंगा क तत्कालीन युवा महाराजाधिराज राज एरिया स सटल करीब 87 बीग्घा जमीन रैयत स बाजार दाम स बेसी टका पर अधिग्रहण केलथि आ निश्चित योजना क तहत पैघ पैमाने पर निर्माण कार्य प्रारम्भ कराउल गेल। एहि योजना क अंतर्गत हराही रेलवे स्टेशन (एकर बाद मे दरभंगा स्टेशन नाम द देल गेल) स राज पुस्तकालय तक गिरीन्द्र मोहन रोड क निर्माण भेल। एकर दूनू कात  ‘A’ टाइप बंगला आ एकर दक्षिण बी टाइप क्वार्टर बनल । चौडा रोड क दूनू कात फूटपाथ, स्ट्रीट लाइट ,अंडर ग्राउंड केबल, नल क व्यवस्था कैल गेल, जे ताहि समय मे बिहारक कोनो आन शहर मे उपलब्ध नहि छल। पक्का ड्रेनेज क सेहो निर्माण एहि पहिल कालॉनी मे भेल ताहि कारण स जलजमाव आ कादो एहि ठामक लोग लेल सपना छल ।  बंगला मे प्रवेश करबा लेल दू गोट बाट मुख्य परिसर वृत मे छल जे बंगला क पोर्टिको स गुजरैत छल ।  ओहि रास्ता क काते काते बोतल पम्प क गाछ एखनो मन प्रफुल्लित क दैत अछि । एहि रोड पर एहन कुल ९  टा बंगला छल, जाहि मे तिरहुत सरकार ९ टा  प्रमुख पदाधिकारी रहैत छलाह । सबटा बंगला मे छह  टा पैघ-पैघ कोठली छल । सबटा बंगला मे आउट हाउस आ गैराज आ गाड़ी धोबा लेल वर्क स्टेशन बनल छल । गिरीन्द्र मोहन रोड क उत्तर स्थित बंगला आ दक्षिण स्थित बंगला मे कनि भिन्नता छल । एकटा इंग्लिश स्टाइल क छल जेना ओकर ड्राइंग रूम मे फायर बॉक्स छल । सब आवास मेससर मैकिनटोश बर्न द्वारा भूकंप निरोधी तकनीक स निर्मित कैल गेल छल । आउट हाउस क छत सीमेंट क लाल खपरा (टाइल्स ) क छल, जाहि पर Burn(ब्रुन) खुदाइल छल।  सबटा आवास इंट क चाहरदीवारी आ ओकर उपर लोहा क जाली स घेरल छल । जाली पर लाल रंग क गुची वाला लाटर छल आ ओकर बगल स श्रिष्ट जाहि मे पीयर फूल होइत छल । सड़क स बंगला करीब – करीब नहि देखाइ दैत छल । रोड क कात क गुलमोहर या अमलतास क गाछ गर्मी मे गिरीन्द्र मोहन रोड लाल आ पीयर रंग स पाटि दैत दल । बंगला नंबर 1 मे मोहंगी क गाछ देखबा योग्य छल । इ बंगला गिरिद्र मोहन मिश्र लेल आवंटित छल । बाद मे इ बंगला मे युवराज जीवेश्वर सिंह लेल आवंटित कैल गेल । बंगला नंबर 8 क गेट क समीप मस्जिद अछि । जे गिरिद्र मोहन मिश्र रोड क दरभंगवी संस्कृति कए देखबैत अछि । ओकर आगू करवला अछि । स्टेशन स करवला स सीधा पश्चिम गिरीन्द्र मोहन रोड स होइत पैलेस एरिया जेबाक बाट छल । करवला क दाहिना एक टा पैघ उज्जर द्वार आ लोहा क गेट छल जाहि ठाम स डेनबी रोड A टाइप बंगला नंबर 6 होइत सडक पैलेस एरिया जाइत छल । इ सडक सेहो गिरिद्र मोहन मिश्र रोड जेका सुसज्जित छल । बंगला नंबर 6 स सटल एकटा पार्क छल । एकर अलावा  सी टाइप ,डी टाइप , इ टाइप क्वार्टर छल जे लेक (सरोवर ) क काते काते एक प्रकार स मेरिन ड्राइव  आनंद दैत छल । गिरिद्र मोहन रोड आ डेनबी रोड एहि दूनू कालॉनी क सडक अलग अलग गेट स पैलेस एहिया मे जाइत छल । सबटा ठाम कारी लोहा क मजबूत नक्कशीदार गेट छल । पेलेस एरिया मे जे पहिने धुलभरल बाट छल तेकरा नव निर्माण मे  पक्का आ चौडा सडकक रूप देल गेल छल । तत्कालीन सरकार सरकार अहि  पर कई लाख टका खर्च केने छल । राज परिवार क भांति दरभंगा क आम जनता लेल सेहो एकटा प्लान टाउनशिप विकसित करबाक प्रस्ताव महाराजा कामेश्वर सिंह ब्रिटिश सरकार लग रखलथि आ अपन आर्थिक हिस्सेदारी देबाक प्रस्ताव सेहो ओहि मे सम्मलित केलथि । कामेश्वर सिंह क प्रस्ताव क अनुसार दरभंगा क विकास सुनियोजित तरीका स हेबाक चाही ताहि लेल एकटा दरभंगा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बनाउल जेबाक चाही। एहि संदर्भ मे अगर सरकार कोनो विधेयक विधान परिषद मे अनैत अछि त हमरा खुशी होउत । महाराजा कामेश्वर सिंह क प्रस्ताव पर बिहार व उडिशा  विधान परिषद् मे एहि संर्दभ मे एकटा विधेयक आनल गेल आ काफी बहसक बाद पारित भेल । एहि विधेयक क अनुसार दरभंगा मे बाजार क विस्तार ,रोड क चौरीकरण , पार्क , अस्पताल लेल जगह क आरक्षण, पर्यावरण ,जल निकासी ,जलापूर्ति , बिजली आपूर्ति क समुचित प्रबंध करबाक छल । दरभंगा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बिल ( बिल नंबर 7 /1934 ) बिहार उडिशा विधान परिषद् मे सरकार क दिस स 3 सितम्बर कए  प्रस्तुत कैल गेल । विधेयक पेश करैत मिस्टर डब्लू . बी . ब्रेट अपन संबोधन मे कहला जे भूकंप क बाद दरभंगा क महाराजाधिराज  आगू बढि कए शहरक विकास लेल प्रस्ताव देलथि अछि आ एकरा लेल एकटा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बनेबाक आग्रह केलथि अछि जाहि मे ओ अपन दिस स पैघ राशि देबाक इच्छा प्रकट केलथि अछि। महाराजक एहि प्रस्ताव कए सरकार स्वागत करैत अछि जाहि स शहर क तंग आ संकरी बस्ती कए फेर स एहि रूप मे प्लान क बनाउल जाएत जाहि स दरभंगा क लोक कए  पिछला भूकंप मे जे त्रासदी आ जान-माल क नुकसान भेल ओ नहि भ सकत। दरभंगा कए इम्प्रूवमेंट स्कीम किया चाही एहि संबंध मे काफी बहस भेल । एहि बहस मे ब्रेट कहला जे पिछला भूकंप देखिनिहार अगर इ सवाल करैत छथि त आश्चर्य ।  बहस मे कहल गेल इ गप सही अछि जे इ शहर दू भाग मे बंटल अछि । दरभंगा आ लहेरियासराय, जे काफी खुलल अछि आ मुख्य सडक चौडा अछि, मुदा शहरक पश्चिम भाग जे आन भाग स प्राचीन अछि आ काफी तंग अछि, इ इलाका मुख्य रूप स बाजार क इलाका अछि। बड़ी बाजार स कटकी बाजार होइत गुदरी बाजार तक काफी घना बस्ती अछि आ भूकंप क दौरान एहि ठाम भगदड क संभावना अछि । एहन मे  एहि ठाम लेल इम्प्रूवमेंट स्कीम क सख्त जरुरत अछि ।  भूकंप स पहिने इ काफी घनी भीड़ वाला बाजार छल, जतए संकरी सड़क छल ओहन किछु मजबूत मकान छल,  मुदा अधिकांश पुरान आ छोट – छोट दुकान छल ।  एहि ठाम एतबा भीड रहैत अछि जे दम लेबाक लेल जगह नहि भेटैत अछि ।  एहन मे अगर फेर स ओहन भूकंप भेल त एहि तंग गली मे ओहन घटना घटत जेहन हाल मे आयल भूकंप में मुंगेर मे घटल अछि । लोग घर स निकलत त बाट पर मकान क मलबा मे दबा जायत । कोनो खुलल जगह एहि ठाम नहि अछि । ओना विगत 3-4 मास मे हमरा कईटा सुझाव प्राप्त भेल अछि । किछु सुझाव  नीक छल त किछु अव्यावहारिक । इ सच अछि जे आब पक्का कंक्रीट क घर बनबाक चाही ,किछु सदस्यक कहब अछि जे एहन घर बनए जे भूकंप मे झूलि जाय, मुदा एकटा मुर्ख आदमी क नाते हम मानैत छी जे सबस बेहतर होएत जे भूकंप एला पर लोग दौड़ कए जल्दी स जल्दी खुलल जगह पर आबि जाइथि जतए हुनकर माथ पर कोनो मलबा खसबाक संदेह नहि रहए । मुदा बड़ी बाजार क लोक कए इ सलाह देनाइ मजाक होएत । कल्पना करू जे 10 फुट क सड़क पर हजार स बेसी लोक  एकाएक एला पर के आगू भागी सकत । ककरो लेल बाहर निकलब कठिन हाएत । एहि लेल  जरुरी अछि जे एहि बाजार कए फेर स बनाउल जाये । जाहि मे चौडा रोड बने ।  इ काज इम्प्रूवमेंट स्कीम करत l एकरा जरूरी कहब नम्र शब्द होएत दरअसल इ दरभंगा क लोक लेल जीवन होएत ।
यदि आजुक पीढ़ी कए नहि त निश्चित रूप स हुनकर आगूक पीढ़ी लेल l बहस क अंत निर्णायक नहि रहल आ इ विधेयक एकटा सेलेक्ट कमेटी कए सौंप देल गेल ।  एहि समिति कए बिल पर 7 सितम्बर ,1934 तक रिपोर्ट देबा लेल कहल गेल ।  कमिटी मे श्री सच्चिदानंद सिन्हा , मौलवी शेख मुहम्मद शफी , मौलवी मुहम्मद हस्सन जन , राय बहादुर श्यामानंद सहाय , बाबु चंद्रेश्वर प्रशाद नारायण सिन्हा , मिस्टर डब्लू . जी . लकी और कुमार गंगानंद सिन्हा सदस्य बनाउल गेलाह । सेलेक्ट कमिटी क रिपोर्ट दरभंगा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बिल क पक्ष मे रहल । रिपोर्ट सदन मे राखल गेल त ओहि पर सेहो खूब बहस भेल। 18 सितम्बर 1934 कए आखिरार विधेयक पारित भेल। पारित हेबा स पूर्व  मुहम्मद शेख शफी बिल मे संसोधन क प्रस्ताव दैत कहला जे एहि विधेयक क कॉपी दरभंगा क लोक मे प्रसारित कैल जाय, जेकर विरोध में डा. सच्चिदानंद सिन्हा ठार भेलाह । श्री सिन्हा क संग मौलवी मुहम्मद हस्सन जन सेहो एहि संशोधन क विरोध केलथि । मौलवी हस्सन जन कहला जे  अगर केकरो एहि बिल स असुविधा अछि त ओ एकटा पुनीत कार्य लेल एहि शहर क हित मे एहि असुविधा कए वहन करबा लेल तैयार रहू, नहि त क्षेत्र क प्रगति कहियो नहि भ सकत आ आगू क पीढी लेल अहां खलनायक सिद्ध भ जायब ।  राय बहादुर द्वारिकानाथ जे तिरहुत डिवीज़न नगरपालिका स चुनि कए सदन मे आयल छलाह ओ सेहो एहि बिल क समर्थन केलथि आ कहलथि जे एहन बिल केवल दरभंगा लेल किया आन शहर लेल सेहो एबाक चाही। ओ कहला जे हम एहि विधेयक क विरोध करैत रही मुदा  लोकक अवधारणा जे इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट दरभंगा राज क इशारा पर आनल गेल अछि एकर हम खंडन करैत छी आ इ आरोप बेबुनियाद अछि ।  ओ कहला जे ट्रस्ट बोर्ड क छह सदस्य मे मात्र एकटा सदस्य दरभंगा महाराज कए मनोनीत करबाक अधिकार अछि ।  बाबू निरसु नारायण सिन्हा सेहो बिलक  समर्थन केलथि,बाबू हरेकृष्ण चौधरी कहलथि जे दरभंगाक विकास मे इ मीलक पाथर साबित होएत ।  मौलवी मुहम्मद अब्दुल घनी  पूजा आ इबादत क स्थान कए ल कए प्रस्ताव देलथि जाहि पर सरकार कहलक जे पूजा स्थान यथावत राखल जाएत, चाहे वो सडकक बीच मे किया नहि आबि जाये । बहसक अंत मे डा. सच्चिदानंद सिन्हा दरभंगा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बिल क पुरजोर समर्थन करैत एकरा पास करबाक प्रस्ताव रखलथि । सिन्हा कहलथि जे इ आधुनिक दरभंगा नहि बल्कि आधुनिक बिहार क सपना थीक । ओ कहला जे भारत मे लोक हित मे हमर अमीर लोकनि टका नहि खर्च करैत छथि जेना कि दोसर देश सब क मे अमीर लोकनि खर्च करैत छथि । ओहि देश सब मे लोक भावना अपन देश स बेसी अछि ।  अपन देश मे जतए अधिकांश लोक गरीब अछि धनवान लोकक टका लोक हित मे लगबाक चाही । एहि विधेयक क सराहना एहि गप क लेल सेहो हेबाक चाही । महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह एहि आपदा क समय मे लोकहित मे सराहनीय कार्य केलथि अछि । हुनकर दान क लाभ उठेबाक जरुरत अछि आ ताहि लेल बिल कए पारित करब जरुरी अछि । एकर बाद बिल पास भ गेल ।  ट्रस्ट क चैयरमैन बाबू विशेश्वर सिंह कए बनाउल गेल आ ट्रस्ट अगिला नवम्बर स कार्य करै लागल। ट्रस्ट द्वारा सबस पहिने दरभंगा-लहेरियासराय क हवाई सर्वे कराउल गेल । एहि प्रकार स दरभंगा देशक पहिल शहर बनल जेकर विकासक खाका आसमान मे बनल । कोलोनेल टेम्पले कए दरभंगा टाउशिप विकसित करबाक जिम्मा सौंपल गेल । राज परिसर क बाहर राजपरिसर जेका सुव्यवस्थित नगर बसेबाक चुनौती क अंदाजा टेम्पले कए छल । ओ अपन योग्यता क परिचय देलथि । महाराजा ऑफिस हुनका दरभंगा क प्लान कए अमली जामा पहिरेबा मे काफी मदद केलक । मुदा टेम्पले क सपना पूरा जमीन पर नहि उतरि सकल । 1942 क भारत छोडो आंदोलन आ एकटा नव शासन व्यवस्था प्रर्दुभाव क आहट समाज क अदूरदर्शी लोक सब कए मौका द देलक । योजना क मुख्य केंद्र गोल मार्केट क दरभंगा क एकटा मुख्य कारोबारी विरोध क देलथि । किछु लोग बंगाली टोला स मिथिला कॉलेज कए स्थानांतिक क ओहि बाजार मे आनि देलथि । कटकी बाजार आ बड़ी बाजार गोल मार्केट मे शिफ्ट नहि भ सकल । ओहि दूनू बाजार क सड़क संकरी रहि गेल । एहि प्रकार स चिल्ड्रेन पार्क लेल आरक्षित जगह पर स्कूल खोली देल गेल जखन कि लालबाग मे राज स्कूल लग आमजन लेल पार्क क स्थान आइ धरि मैदान बनल अछि ।  1988 आ 2015 क भूकंप मे फेर स ओ चिंता जताउल गेल । 1988 मे त जानमाल क क्षति सेहो भेल । अजीमाबाद पार्क मे कॉलेज खोलला स दरभंगा शिक्षा क केंद्र त नहि बनि सकल, मुदा जे प्रदेश क एकटा पैघ व्यापारिक केंद्र बनबा क सपना देखैत छल ओ सपना नींद टूटबा स पूर्वहि टूटी गेल..दरभंगा एखन धरि अपन भविष्य क प्रति सचेत भ सुतल अछि । सच कहू त 1934 मे सुव्यवस्थित रूप स बसबा लेल अगर उजरि गेल रहिते दरभंगा, त आइ बचि गेल रहिते दरभंगा । काश..स्मार्ट सिटी की सूची मे आबि गेल रहिते दरभंगा ।


Thursday 29 June 2017

महाराजा रमेश्वर सिंह का ड्रीम लैंड राजनगर


महाराजा रमेश्वर सिंह महाराज लक्ष्मिश्वर सिंह के छोटे भाई थे l महाराज लक्ष्मिश्वर सिंह को  दरभंगा राज की राजगद्दी पर बैठने के बाद रमेश्वर सिंह को दरभंगा राज का बछोर परगना दी गयी और रमेश्वर सिंह ने अपना मुख्यालय राजनगर को बनाया l उनकी अभिरुचि भारतीय संस्कृति और धर्म में था l अपनी अभुरुची के अनुरूप उन्होंने राजनगर में राजप्रसाद का निर्माण कराया जिसकी कोना- कोना  हिन्दू वैभव को दर्शाता था l तालाबों से युक्त  शानदार महलों और भव्य मंदिरों , अलग से सचिवालय ,नदी और तालाबों में सुन्दर घाट जैसे किसी हिन्दू साम्राज्य की राजधानी हो महल में प्रवेश दुर्गा हॉल से होकर था जहाँ दुर्गा जी की सुन्दर मूर्ति थी ,शानदार दरवार हॉल जिसकी नक्कासी देखते बनती थी उससे सटे ड्राइंग रूम जिसमे मृग आसन उत्तर में गणेश भवन जो उनका स्टडी कझ था महल का पुराना हिस्सा बड़ा कोठा कहलाता था महल के बाहर सुन्दर उपवन सामने नदी और तालाब मंदिर के तरफ शिव मंदिर जो दझिन भारतीय शैली का बना था ,उसी तरह सूर्य मंदिर ,सफ़ेद संगमरमर का काली मंदिर जिसमे प्रतिस्थापित माँ काली की विशाल मूर्ती  मंदिर दरभंगा के श्यामा काली के करीब करीब हुबहू  , सामने विशाल घंटा वह भी दरभंगा के तरह हीं   जिसके जैसा पुरे प्रान्त में नहीं था   ,   अर्धनारीश्वर मंदिर .राजराजेश्वरी मंदिर ,गिरजा मंदिर  जिसे देख के लगता था जैसे दझिन भारत के किसी हिन्दू राजा  की  राजधानी हो  l महाराज रमेश्वर सिंह वास्तव में एक राजर्षि थे इन्होने अपने इस ड्रीम लैंड को बनाने में करोड़ों रूपये पौराणिक कला और संस्कृति को दर्शाने पर खर्च किये थे देश के कोने कोने से राजा महाराज ,ऋषि ,पंडित का आना जाना रहता था l जो भी इस राजप्रसाद को देखते थे उसके स्वर्गिक सौन्दर्य को देखकर प्रशंसा करते नहीं थकते थे l प्रजा के प्रति वात्सल प्रेम था जो भी कुछ माँगा खाली हाथ नहीं गया l दरभंगा के महाराज के देहान्त के बाद दरभंगा के राजगद्दी पर बैठने के बाद भी बराबर दुर्गा पूजा और अन्य अवसरों पर राजनगर आते रहते थे l दुर्गा पूजा पर भव्य आयोजन राजनगर में होता था ,मंदिरों में नित्य पूजा - पाठ .भोग ,प्रसाद ,आरती नियुक्त पुरोहित करते थे l १९२९ में दरभंगा में उनका देहांत हुआ और उनके चिता पर दरभंगा के मधेश्वर में   माँ श्यामा काली की भव्य मंदिर है l उनके मृत्यु के बाद राजनगर श्रीविहीन हो गयी और १९३४ के भूकंप में ताश के महल जैसा धराशायी हो गयी लेकिन अभी भी कई मंदिर और राजप्रसाद के खंडहर से पुरानी हिन्दू वैभव की याद आती है इसकी एक एक ईंट भारत के महान साधक की याद दिलाती है l राजनगर जिला मुख्यालय मधुबनी से २० किलो मीटर पूरब में है और दरभंगा से ६० कि.मी .पूरब दझिन में स्थित है l  

Tuesday 27 June 2017

श्री काली माता मंदिर ,पटियाला

श्री काली माता मंदिर ,पटियाला ,पंजाब का दरभंगा से वही सम्बन्ध है जो कप्तान अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री का श्री काली माता मंदिर से है l पटियाला के महाराज भूपेन्द्र सिंह के पोता है पंजाब के  वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह जी l तंत्र को पश्चिमी जगत को परिचित कराने वाले जॉन वुडरुफ्फ़ पेन नाम  आर्थर अवलोन
 जिनकी तंत्र पर लिखी किताब ने पश्चिमी जगत को तंत्र को विज्ञान मानने पर बाध्य कर दिया और लोगों को तंत्र के प्रति आकर्षित किया ने अपनी किताब में यह लिखा है कि १९०८ में तंत्र पर हुए कांफ्रेंस में दरभंगा में महाराजा रमेश्वर सिंह जो एक सिद्ध तांत्रिक थे जिन्होंने बाढ़ से बचाने के लिए अपनी साधना से नदी की दिशा बदल दी थी  और महाराजा भूपेंद्र सिंह जिन्हें महाराज रमेश्वर सिंह ने शाक्त बनाया था भी उपस्थित थे l महाराजा रमेश्वर सिंह माँ काली के बड़े उपासक थे माँ काली श्री दुर्गा के एक रूप हैं अर्गला स्तोत्र में काली के रूप में आया है   और  तंत्र साधना  की देवी है  इन्होने अपने राजप्रसाद राजनगर , पुराना दरभंगा  में काली की उजले संगमरमर की भव्य मंदिर बनाये थे जैसा कहीं देखने को कहीं नहीं मिलती l महाराजा के चिता पर भी माँ श्यामा काली की भव्य मूर्ति स्थापित है l महाराजा के देहांत के बाद १९३६ में  महाराजा भूपेंद्र सिंह जी ने ६ फीट ऊँची श्री काली माता की मूर्ती पावन ज्योति ,कोलकाता , बंगाल से बनवा कर  पटियाला में प्रतिष्ठित करायी जहाँ उन्होंने  बलि प्रदान की थी  l  इस परिसर के बीच में राज राजेश्वरी मंदिर भी है l राजनगर में भी राज राजेश्वरी मंदिर अवस्थित है l दरभंगा में १९३४ के भूकंप के बाद माँ कंकाली की मंदिर सरदार   इन्द्रजीत सिंह ने बनवाया था l महाराजा भूपेंद्र सिंह एक सिख शासक  थे पर उन्होंने  तंत्र के किताब के प्रकाशन संस्था अगम अनुसंधन समिति ,कोलकाता को आर्थिक फंडिंग की थी  जिसके प्रेसिडेंट महाराजा रमेश्वर सिंह थे जिसने तंत्र की  कई पुस्तक जिसमे आर्थर अवेलोन की पुस्तक भी थी प्रकाशित की थी और हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी को  हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण हेतु  लाखों रूपये चंदा दिये था  जिसके  अध्यझ महाराजा रमेश्वर सिंह थे l     उनके द्वारा श्री माता काली का मंदिर का निर्माण उनका दरभंगा  संपर्क था जो  हिन्दू -सिख भाई चारे का अनुपम मिसाल है l यह मंदिर एक भव्य प्रांगन जिसमे सरोवर भी है ,पटियाला सिटी  के मॉल रोड पर बिरादरी गार्डन के सामने  है l

Saturday 24 June 2017

Rameshwar Singh a Sidha Tantrik in the eyes of Arthur Avalon.

The Maharaja of Darbhanga , Rameshewar Singh ,was a fellow disciple of Sivacandra and a renowned tantrik practioner. He was described by the Marquis of Zetland as a notorious Sakta, patron of the temple to the Goddess at Kamakhya where the erotoic ritual was performed . Vasant Kumar Pal refer to him several times ; as sponsor of spectacular tantric puja performed by his guru; as someone who practiced sadhana in the crematoria of Bihar and Bengal alongwith Sivacandra and as sponsor of many of the saint publications . He was a founder and General President of the Sri Bharat Dharma Mahamandal, a neo- conservative Hindu organisation which nevertheless had universalist attitude and sought to make the scriptures available to all casts and to women. His sponsorship of the Tantrik Texts probably reflected this aim . Rameshwar Singh was a colourful character who had a reputation among his subject as a Sidha Tantrik.; he was credited with having changed the course of river through performing sadhana thus diverting a flood.He was called a rajjarshi , a king - rishi . He was relatively unusual in being a member of the princely class who was also a Brahmin , and took a leading role in the movement to present inter- caste marriage and in defence of brahmanical intrests generally. His Kingdom was really no more than a particular large estate but he was extremely wealthy.
The Agamanusandhana Samiti , Calcutta was publishing Company set up specially for the Tantrik Texts, though it may have owned copywright of the some other books as well. Its publicity leaflet, mentioned above reveals it to have had directly propaganda purpose , specifically aimed at the English
educated Indian public. Its President , the Maharaja of Darbhanga, seems to have been the main financial sponsor after Woodroffe's departure and was suceeded on his death in 1931,by his son who took over as President.

Tuesday 20 June 2017

तांत्रिक महाराजा





महाराजा रमेश्वर सिंह जिनके चिता पर दरभंगा (मिथिला ) में श्यामा काली की भव्य मूर्ति स्थापित है ,भारत के महान साधक थे l  वे असम के कामख्या मंदिर के प्रेसिडेंट थे और असम में  हुए १८९८ के भूकंप से हुए क्षतिग्रस्त मंदिर का निर्माण कराये थे l वे एक उदार राजा थे जरूरतमंद को मदद करते थे l उनकी अदम्य इच्छा थी कि  तंत्र के वैज्ञानिक  पहलु को लोग  समक्षे l इसी निमित  १९०८ में उन्होंने  तंत्र के सभी प्रमुख विद्वानों का कांफ्रेंस दरभंगा में  आयोजित किये थे जिसमे विद्वान ब्राह्मण ,महान साधक और वैज्ञानिक उपस्थित हुए थे l वैधनाथ धाम के पंडित प्रकाश नन्द झा ,काशी के पंडित शिवचरण भट्टाचार्य , श्रीविद्या साधक पंडित सुब्रमन्यम शास्त्री , जॉन वुडरोफ्फ़ अगम अनुसंधान समिति कोलकाता  के प्रेसिडेंट प्रमुख थे   वह जॉन वुड रुफ्फ़ थे जिन्हें तंत्र ज्ञान और रहस्य को पश्चिमी जगत को रूबरू कराने का श्रेय जाता है उनके साथ इवान स्टीवेंसन ,  ब्रिटेन के महान चिकित्सक और वैज्ञानिक जिनका नाम विलियम होप्किंसों भी आये थे . इस अवसर पर महाराजा रमेश्वर सिंह के मित्र पटियाला के महाराज भूपेंद्र सिंह  भी  आये थे  वे भी देवी शक्ति  के  बड़े  साधक  हो गये थे  l  महाराजा  स्वंय  अपने  मेहमान को नजदीक के  स्थान  भगवती उग्रतारा पीठ  , महिषी ले गये थे  l  
महाराजा रमेश्वर सिंह ,दरभंगा ,मिथिला एक असाधारण देवी रहस्य के जानकार और साधक तथा देवी रहस्य के विज्ञान और तकनिकी के प्रतिपादक  थे .के प्रति दिन का रूटीन था कि वे २ बजे पूर्वाहन में उठकर बिछावन पर हीं दुर्गा सप्तसती का पूरा पाठ पूर्ण करने के उपरांत ३.३० बजे स्नान करने के बाद संध्या वंदन और सहस्त्र गायत्री जप तदुपरान एक मन चावल से पिण्ड दान फिर ब्रह्म मुहूर्त में पार्थिव शिवलिंग की पूजा के बाद देवी भगवती के मंदिर के लिए प्रस्थान करते थे वहां तांत्रिक विधि से तंत्र  संध्या ,पात्रस्थापन के बाद भगवती  काली की उपासना  आवरण पूजा ,जप ,पञ्चांग पाठऔर उसके बाद पुष्पांजलि के साथ ककरदी  सहस्त्रनाम उसके बाद कुमारी ,सुवासिनी , बटुक का पूजन तर्पण और महाप्रसाद लेने के बाद एक घंटा आराम के बाद ११ बजे से ३.३० बजे तक  राजकाज  देखते थे l उसके बाद स्नान करने के बाद  वैदिक संध्या वंदन और गयात्री जप और प्रदोष समय के अन्तराल में पार्थिव पूजा संपन्न करते थे l रात्रि में वे सांगोपांग निशार्चन ,१०८ ब्राह्मण सामूहिक रूप से दुर्गा सप्तसती का पाठ और ५१ ब्राह्मण से  रुद्राभिषेक संपन्न कराते थे l महाराजा अपनी पूरी जीवन महानुष्ठान में परिवर्तित कर दिये थे l वे काफी पढ़े लिखे और महान विद्वान थे l अंग्रेजी ,फ्रेंच ,बंगाली , मैथिलि ,हिंदी ,संस्कृत ,फारसी  के विशेषज्ञ थे l वे तंत्र विज्ञान के मास्टर के साथ वेदान्त, सांख्य योग . व्याकरण के अच्छे जानकार थे l   
 तीन- चार दिनों के इस भ्रमण में विदेशी विद्वानों ने तंत्र साधना के वैज्ञानिक सत्य को आत्मसात करना प्रारम्भ कर दिया था। इसलिए आज प्रातः इस विशेष सम्मेलन का प्रारम्भ हुआ तो वे भी उत्साहपूर्वक भागीदारी कर रहे थे। इसकी अध्यक्षता का भार पं. शिवचन्द्र भट्टाचार्य पर था, जिन्होंने स्वयं महाराज को तन्त्र साधना के लिए विशिष्ट मार्गदर्शन दिया था। इसी के साथ वह जॉन वुडरफ के भी दीक्षा गुरु थे। महाराज जी की प्रेरणा से ही सर जॉन वुडरफ ने पण्डित शिवचन्द्र भट्टाचार्यसे शक्ति साधना की दीक्षा ली थी। वह कह रहे थे- तन्त्र दरअसल सृष्टि के विराट अस्तित्त्व में एवं व्यक्ति के स्वयं के व्यक्तित्व में प्रवाहित विविध ऊर्जा प्रवाहों के अध्ययन- अनुसन्धान एवं इनके सार्थक सदुपयोग का विज्ञान है। तंत्र मानता है कि जीवन एवं सृष्टि का हर कण शक्ति से स्पन्दित एवं ऊर्जस्वित है। यह बात अलग है कि कहीं यह शक्ति प्रवाह सुप्त है तो कहीं जाग्रत्। इस शक्ति की अभिव्यक्ति यूं तो अनन्त रूपों में है, पर इसकी मूलतः दशमहाधाराएँ हैं, जिन्हें दश महाविद्या कहा जाता है। 
         पं. शिवचन्द्र भट्टाचार्य तन्त्र के मूलभूत वैज्ञानिक सत्य को उद्घाटित कर रहे थे। वे बता रहे थे कि विराट् ब्रह्माण्ड में प्रवाहित ये शक्ति प्रवाह व्यक्ति में प्राण प्रवाह के रूप में प्रवाहित हैं। ब्रह्माण्ड में इन्हीं प्रवाहों से सृष्टि सृजन हुआ है। इसी के साथ उन्होंने निवेदन किया कि व्यक्ति में प्राण प्रवाह के रूप में प्रवाहित इन शक्ति धाराओं का स्वरूप विवेचन महाराज रमेश्वर  सिंह करेंगे एवं ब्रह्माण्ड व्यापी इनके स्वरूप की विवेचना स्वयं महापण्डित सुब्रह्मण्यम् शास्त्री करेंगे। आचार्य शिवचन्द्र के इस निर्देश को थोड़ा संकोचपूर्वक स्वीकारते हुए महाराज उठे। उनका भरा हुआ गोल चेहरा, रौबदारमूँछे, औसत कद, गेहुँआ रंग, माथे पर श्वेत भस्म का ऊर्ध्व तिलक उन्हें भव्य बना रहे थे। 
        उन्होंने कहना प्रारम्भ किया- योग शास्त्र में वर्णित पाँच प्राण एवं पाँच उपप्राण ही दरअसल व्यक्ति के अस्तित्त्व में व्याप्त दश महाविद्याएँ हैं, जो व्यक्ति को विराट् से जोड़ती हैं। इनमेंआदिविद्या महाकाली एवं तारा अपान एवं इसके उपप्राण कूर्म के रूप में जननेन्द्रिय में वास करती हैं। षोडशी एवं भुवनेश्वरी प्राण एवं इसके उपप्राण नाग के रूप में हृदय में स्थित है। भैरवी एवंछिन्नमस्ता उदान एवं देवदत्त के रूप में कण्ठ स्थान में निवास करती हैं। धूमावती एवं बगलामुखीसमान एवं कृकल के रूप में नाभि प्रदेश में स्थित हैं। मातंगी एवं कमला व्यान एवं धनञ्जय के रूप में मस्तिष्क में अवस्थित हैं। ऐसा कहकर महाराज थोड़ा रूके और बोले- मैंने महामाया के इन रूपों का स्वयं में इसी तरह से साक्षात्कार किया है। 
        महाराज के अनुभव परक ज्ञान ने सभी को विमुग्ध किया। आचार्य शिवचन्द्र का संकेत पाकर महाराज के बैठने के पश्चात् महापण्डित सुब्रह्मण्यम् शास्त्री उठे। इन्होंने अभी कुछ वर्षों पूर्व महाराज रमेश्वर  सिंह को तन्त्र साधना की साम्राज्य मेधा नाम की विशिष्ट दीक्षा दी थी। उनका स्वर ओजस्वी था, उन्होंने गम्भीर वाणी में कहना प्रारम्भ किया- इस अखिल ब्रह्माण्ड में आदिविद्यामहाकाली शक्ति रात्रि १२ से सूर्योदय तक विशेष सक्रिय रहती हैं। ये आदि महाविद्या हैं, इनके भैरव महाकाल हैं और इनकी उपासना महारात्रि में होती है। महाविद्या तारा के भैरव अक्षोम्य पुरुष हैं, इनकी विशेष क्रियाशीलता का समय सूर्योदय है एवं इनकी उपासना का विशेष समय क्रोधरात्रि है। षोडशी जो श्रीविद्या है, इनके भैरव पञ्चमुख शिव हैं। इनकी क्रियाशीलता का समय प्रातःकाल की शान्ति में है। इनकी उपासना काल दिव्यरात्रि है। चौथी महाविद्या भुवनेश्वरी के भैरव त्र्यम्बकशिवहैं। सूर्य का उदयकाल इनका सक्रियता काल है। इनकी उपासना सिद्धरात्रि में होती है। पाँचवीमहाविद्या भैरवी है इनके भैरव दक्षिणामूर्ति हैं। इनका सक्रियता काल सूर्योदय के पश्चात् है। इनकी उपासना कालरात्रि में होती है। छठवी महाविद्या छिन्नमस्ता है, इनके भैरव कबन्धशिव हैं। मध्याह्न सूर्य का समय इनका सक्रियता काल है, इनकी उपासना काल वीररात्रि है। 
         धूमावती सातवीं महाविद्या हैं, इनके भैरव अघोररूद्र हैं। मध्याह्न के पश्चात् इनका सक्रियता काल है एवं इनकी उपासना दारूण रात्रि में की जाती है। बगलामुखी आठवी महाविद्या हैं, इनके भैरवएकवक्त्र महारूद्र हैं। इनकी सक्रियता का समय सायं हैं। इनकी उपासना वीररात्रि में होती है। मातंगीनौवीं महाविद्या है, इनके भैरव मतंग शिव हैं। रात्रि का प्रथम प्रहर इनका सक्रियता काल है। इनकी उपासना मोहरात्रि में होती है। भगवती कमला दशम महाविद्या है। इनके महाभैरव सदाशिव हैं, रात्रि का द्वितीय प्रहर इनका सक्रियता काल है। इनकी उपासना महारात्रि में की जाती है। इन दशमहाविद्याओं से ही सृष्टि का व्यापक सृजन हुआ है। इसलिए ये सृष्टिविद्या भी हैं। 
          इसी के साथ महाराज द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में तन्त्रविज्ञान की व्यापक परिचर्चा होते- होते सांझ हो आयी। महाराज की विशेष अनुमति लेकर उनकी सायं साधना के समय जॉन वुडरफ के साथ आए वैज्ञानिकों ने महाराज का विभिन्न यंत्रों से परीक्षण किया। इस परीक्षण के बाद उन्हें आश्चर्यपूर्वक कहना पड़ा- कि तन्त्र साधक में प्राण विद्युत् एवं जैव चुम्बकत्व सामान्य व्यक्ति की तुलना में आश्चर्यजनक ढंग से अधिक होता है। उनके इस कथन पर महाराज रमेश्वर  सिंह हँसते हुए बोले- दरअसल यह दृश्य के साथ अदृश्य के संयोग के कारण है। इसका वैज्ञानिक अध्ययनज्योतिर्विज्ञान के अन्तर्गत होता है।

Wednesday 17 May 2017

WARRIOR OF SIRKAR TIRHUT

The history of the Royal family shows that the descendants of Mm Mahesh Thakur often engaged in military operations to subjugate generally the neighbouring chiefs and at times against greater powers. Nawab Ali Vardi Khan , who was always in need of money owing to the great wars he has engaged in during the whole of his eventful career and was in consequence bent upon reducing the Hindu Chiefs of Bihar and Orissa, attacked Maharaja Raghava Singh who fought against him . An account of this fight is found in the Riyaz- Us- Salatin by Abdus Salam,296, Calcutta ,1802 Edition:--- " And being aided with the Afghans, Ali Vardi advanced with his forces against the tracts of the Rajas of Bettiah and Bhowara ( the capital of Sirkar Tirhut) who were refractory and trubulent. Their regions had never previously been trod by the feet of the armies of former Nazims, nor had their proud heads ever bent before to any of the former Subadars. Indeed they had never before paid the Imperial revenues and taxes. After fighting with them incessantly, Ali Vardi Khan became victorious and triumphant. Raiding and pillaging their tracts, Ali Vardi Khan carried off a large booty amounting to several lakhs in specie or other effects, and setting with the Raja the amounts of tribute, presents and the Imperial revenue, he raised an immense sum. " In lieu of the tribute which used to be paid to the Moghul Emperor very irregularly or not at all, the Nawab fixedit at one lakh of rupees per annum of the entire Sirkar Tirhut. Maharaja Raghava Sing carried operations against Bhup Singh, a Chief of Nepal territory, who had taken possession of  Parganah Panch Mahal (in Muzaffarpur district).Bhup Singh was defeated in a battle and killed: a contempory account of this engagement in verse is still current in Mithila. He  fought three more battles. His son , Raja Narendra Singh , had to fight the Subadar of Patna who had sent an army under Fouzdar Bhikari Singh , Salawat rai, and  Bhagat Singh. A sanguinary battle took place between the two armies at Kandarpighat  in which two of the Subadars Generals were killed and a  third ( Bhikhari  Mahta ) sought safety in flight.  A vivid account of this battle was written in the form of Kavya by Lala Kavi , brought to light by Sir George Grierson , the famous Orientalist ; and two other popular ballads are also extant . The military officers of Raja Narendra Singh who led in that battle were rewarded with jagirs which are still in the possession of their descendants. The family history written by his contemporary , Gopala Kavi , mentions that Maharaja Narendra Singh was asked by the Emperor Muhammad Shah to render service by marching against two Muhammadan Chiefs on the North- Western Frontier, that his faithful services were appreciated by the Emperor and that "Svatantra " raja privileges were given to him by the Emperor in reward,  All the raja of Sirkar Tirhut upto the time of Raja Madho Singh were always styled in their official documents are "ever victorious in battle. " a style then used only by those princes who had military power.
Bhowara Fort 
Kandarpighat Battle Memorial

Sunday 14 May 2017

आज के ज़माने में राजा महाराजा के स्टेचू से भारत के पुराने  इतिहास और संस्कृति  का बोध होता है  और उस इतिहास और उस रियासत को जानने की ललक लोगों में  पैदा होती है  जब हम दुसरे शहर में हर जगाह उनके स्टेचू देखता हूँ तो दरभंगा याद आने लगता है मैं कुछ दिन पूर्व  बैंगलोर में था  कुबन पार्क हो या लाल बाग सब जगह उनके मूर्ती लगे हैं l एक हम हैं कि  राजनेता के मूर्ती लगाते हैं  जिनका दरभंगा से कोई सम्बन्ध नहीं है और न कोई योगदान , जिसे देख कर लोगों में किसी तरह का बोध नहीं आता l दरभंगा  प्रिंसली स्टेट हैं हमें  दरभंगा के  राजा- महाराजा की स्टेचू लगानी चाहिये इससे हमारे शहर को एक पहचान बनेगी और मिथिला की संस्कृति से लोग परिचित होंगें l सच मानिये ये महाराजा हमारे नेता से कहीं अच्छे थे जिन्होंने अपने राज के विकास में बड़ी योग्यदान दी l  खेलकूद , संगीत को बढ़ावा दिया , पुस्तकालय - स्कूल - कॉलेज बनवाया , कल - कारखाने लगाये , चिकित्सालय बनवाये ,मंदिर - तालाब बनवाये  जो भी कार्य किया उच्च कोटि की l उनकी सोच बड़ी थी ,दिल बड़ा था ,प्रजा की प्रति हमदर्दी थी l हमारी मांग होगी कि दरभंगा हवाई - अड्डा का नाम महाराजा कामेश्वर सिंह बहादुर जिन्हें दरभंगा, मधुबनी , पूर्णिया  हवाई अड्डा का निर्माण का श्रेय है तथा बिहार के पहले एविएशन कंपनी खोलने और वायु सेवा शुरू करने का श्रेय जाता है,  के नाम पर हो l

Saturday 13 May 2017

हिन्दू मुस्लिम भाईचारा का मिसाल दरभंगा राज

दरभंगा राज परिसर यानि रामबाग किला और वर्तमान कामेश्वर नगर जब आप टहलने या घुमने जायेंगें तो हर जगह मुख्य स्थान पर आपको मस्जिद ,मकवारा दिखने को मिलेंगें यहाँ तक कि लक्ष्मिश्वर पैलेस के बगल में मकवारा देख कर सोचेंगें कि एक कट्टर धार्मिक  ब्राह्मण राजा  के निवास  के बगल में यह मकवारा कैसे ठीक उसी तरह मस्जिद को सहेजते बचाते किला का निर्माण कट्टर हिन्दू और मुस्लिम के गले नहीं उतरता l यह इसीतरह है जैसे अकवर के महल फतेहपुर सिकरी  में तुलसी चौरा  l  
बहुत कम लोगों को पत्ता है कि मुग़ल सल्तनत के अंतिम  वारिस का मकवारा दरभंगा के तत्कालीन महाराज ने दरभंगा में बनवाया था और अंग्रेज  से बचा कर दरभंगा के काजीमुहल्ला यानि आजके कटहलवाड़ी में मकान और इबादत करने के लिए मस्जिद बनाया था l जब अंग्रेज १८५७ के ग़दर के बाद बहुदुर शाह जफ़र के परिवार का खून का प्यासा हो गया था तब दिल्ली से भागने के बाद जैबुरुद्दीन बहादुर की मुलाकात दरभंगा के महाराज लक्ष्मिश्वर सिंह से हुई थी ,महाराजा ने उन्हें दरभंगा आने का आमंत्रण दिया और पूर्ण सुरझा का भरोसा दिलाया उसके अगले साल जैबुरुद्दीन बहादुर दरभंगा तसरिफ लाये l उनके रहने के लिए राज परिसर से सटे काजी मोहल्ला में उनके रहने के लिए घर और इबादत के लिए मस्जिद का निर्माण राज ने कराया  बहादुर शाह जफ्फर का यह वारिस अपने जीवन के अंतिम २९ वर्ष दरभंगा में बिताये जिसमे उन्होंने तीन किताब लिखी l मौज ए सुल्तानी उनमे एक है l १९१० में उनके देहांत हो गया दिग्घी टैंक के किनारे राजकिय सम्मान के साथ दफनाया गया और १९१४ में तत्कालिन दरभंगा के महाराज भारत धर्म महामंडल  के प्रमुख रमेश्वर सिंह ने लाल पत्थर का खुबसूरत मजार बनवाया l  
 गौहर  जान और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान राज परिवार
 के मांगलिक अवसर पर  आपनी प्रस्तुति देते थे l ये कम ही लोगों को मालूम होगा कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के शिखर पर पहुंची गौहर जान ठुमरी और भजन गाया करती थी l  गौहर जान दझिण एशिया की पहली गायिका थी जिनके गाने ग्रामोफ़ोन कम्पनी ने रिकॉर्ड किये l दरभंगा राज ने जहाँ  अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय को  सहायता दी  वहीँ हिन्दू विश्वविद्यालय को संरंझन l दरभंगा में जहाँ मंदिरों को वित्तीय साधन उपलब्ध कराये गये वहीँ करवला को चंदा दी जाती रही l 

Wednesday 10 May 2017

कुछ अपनी बात

बचपन से राजपरिवार में आने जाने का सौभाग्य मिला l बड़ी महारानी को बडकी काकीजी ,छोटी महारानी को छोटकी काकीजी ,महाराज को दादा, महाराज की इकलौती बहन को पिसियाजी  और राजकुमार शुभेश्वर सिंह को शुभु भैजी कहा करते थे l रामबाग में बड़ी महारानी हमेशा भोज दिया  करती थी जिसमे हमारे परिवार को निमंत्रण जरुर रहता था भला रहे भी क्यों नहीं हमारी दादी को काफी आदर था उस परिवार में    वह महाराजा के मामी थी l राजमाता साहेब के ज़माने से हीं उनकी आदर था l राजमाता साहेब हमारे दादाजी यानि बाबा के छोटी बहन थी l मैं जब दो साल का था तभी महाराजा का निधन हो गया हमसे बड़े भाई जो चार पांच साल के थे महाराजा के साथ हीं रहते थे महाराज दरभंगा से बाहर कोलकाता , दिल्ली ,शिमला जहाँ भी जाते थे तो मेरी दादी और बड़े भाई साथ रहते थे l दादी कहती थी कि मुझसे छोटे भाई के जन्म के बाद महाराज ने कहा था कि अब रमण यानि मुझे भी अपने पास ले आयेंगें लेकिन वह सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हो सका l मेरे परिवार से स्नेह का कारण यह था कि महाराजा मेरे दादाजी यानि अपने बड़े मामा का बहुत आदर करते थे l दादी कहती थी कि महाराज उनका इतना लिहाज करते थे कि जब एकवार वे महाराजा से मिलने पहुंचे थे तो महाराज उस वक्त सिगार पी रहे थे जैसे हीं मामाजी को देखे तो सिगार पीठ के पीछे छिपा लिया जिसके कारण जिस सोफे पर बैठे थे वह जल गया था l इसीतरह एकवार मेरे दादाजी अपनी कार से महाराजा से मिलने आये . महाराजा ने उनके सर पर चोट  देख कर पूछा तो उन्होंने सहज भाव से कहा कि कार में लग गयी थी l दरअसल हुआ यह था कि दादाजी लम्बे कद काठी के थे और कार छोटी थी l जब दादाजी विदा हुए तो उनकी  कार पार्किंग की जगह पर नहीं थी वे अचकचा कर इधर उधर देखने लगे महाराजा समझ गये उन्होंने सामने खड़ी कार पर बैठ जाने का इशारा किया l वह कार दादाजी के कार से बड़ी थी पेनटैक् जो हमेशा के लिए दादाजी को दे दिया गया l
मेरे पिताजी एक साल के हीं थे कि दादाजी गुजर गये महाराजा ने इस गाड़ी को बेचवा कर उस रूपये को बाबूजी के नाम से टी - स्टेट में निवेश करवा दिया था l मेरे दादाजी के ड्राइवर गुरूजी जो मेरे हीं गाँव के कर्ण कयास्थ थे बाद में दरभंगा राज के एक्सक्यूटर पंडित लक्ष्मीकांत झा के ड्राईवर थे l मेरी दादी जिन्हें हमलोग दाई कहते थे ने एक वाकया सुनायी थी कि भारत पाकिस्तान के बंटवारे के समय वह महाराजा के साथ शिमला से महाराजा के सैलून से  जब  साथ साथ आ रही  थे  तो अंबाला से पीछे एक मुस्लिम जो जान बचाने का गुहार कर रहा था उसे   महाराजा ने अपने सैलून में पनाह दे दी थी जिसके कारण अंबाला में आन्दोलनकारियों ने काफी बबाल मचाया लेकिन महाराजा के ए डी सी कर्नल माल सिंह ने स्थिति को संभाला था l

   मेरे पिताजी का सिलेक्शन भारतीय थल सेना में कप्तान में हुआ था लेकिन एकलौता संतान रहने के कारण दादी की इच्छा नहीं थी l  उन्होंने महाराज से मेरे पिताजी के विषय में बात की महाराजा ने बुलाकर कहा के बुधन से भेंट कर लो और महाराज के कोलकाता जाने वाली पार्टी में उनका टिकट ले लिया  गया और महाराज के कोलकाता पहुँचने से पूर्व महाराज के पार्टी के साथ वे कोलकाता पहुँच गयेl महाराज जहाँ भी बाहर जाते थे उससे पहले महाराजा की पार्टी पहले पहुँचती थी l  कोलकाता के दरभंगा एविएशन में मेरे चाचाजी जिन्हें हमलोग काकाजी कहते हैं मैनेजर के पद पर थे उन्ही के अधीन दरभंगा एविएशन में पिताजी की नौकरी लग गयी l महाराजा जब अंतिम बार कोलकाता आये थे तो उन्होंने पिताजी को कहा कि अब द्वारिका यानि हमारे काकाजी को दरभंगा में और तुम्हे यहाँ उनका काम सम्हालना है लेकिन ऐसा हो नहीं सका और दरभंगा लौटने के बाद महाराजा का निधन का समाचार मिला . समाचार सुनते हीं मेरे चाचाजी के साथ  पिताजी तुरंत दरभंगा वापस लौट गये और दरभंगा में हीं रह गये  l चाचाजी दरभंगा राज के राजकाज में व्यस्त हो गये और पिताजी दरभंगा में हीं राज मुख्यालय  में नौकरी करने करने लगे l चाचाजी बाद में दरभंगा राज के ट्रस्टी बने और पिताजी लैंड डिस्पोजल ऑफिसर और दोनों भाई गिरीन्द्र मोहन रोड के बंगला न . ५ और १० जो  सड़क के आमने सामने था, रहने लगे इसी रोड के बंगला न. १ में कुछ दिन के बाद राजकुमार जीवेश्वर सिंहजी आकर रहने लगे  l हमारे बगल के बंगला में जिसमे आचार्य रमानाथ झा रहा करते थे उसमे मंझले राजकुमार अभी  रहते हैं l बंगला न . ८ जो उसके बगल में था उसमे दरभंगा राज के सहायक  मैनेजर पंडित दुर्गानंद झा रहते थे और उनसे कुछ आगे ठीक हराही के किनारे डैनवी कोठी में दरभंगा राज के मैनेजर मि . डैनवी पहले  रहा करते थे l  मेरा बचपन इसी गिरीन्द्र मोहन रोड में बिता और नरगोना पैलेस ,रामबाग  बड़ी महारानी और छोटी महारानी के यहाँ आना जाना बना रहा l राजकुमार शुभेश्वर सिंह से  मेरे पिताजी का अन्तरंग सम्बन्ध था उनका मेरे घर पर आना जाना रहता था और उनके बुलावे पर हमलोग क्रिकेट खेलने रामबाग जाते रहते थे l क्रिकेट, टेबल टेनिस ,  बिल्ल्यार्ड  के वे अच्छे खिलाडी थे l हमलोगों से खुलकर बात करते थे और हमेशा भेंट स्वरुप  देते रहते  थे l जब मै बी . कॉम में पढ़ रहा था तो उन्होंने रामेश्वर ठाकुर जो प्रख्यात सी . ए थे और बाद में नेहरु परिवार से घनिष्ट सम्बन्ध रहने के कारण लोकसभा के सदस्य और केन्द्रिय मंत्री बने ,से मेरी मुलाकात कराते हुए मुझे सी ए ठाकुर जी के फार्म में करने का सुझाव दिए थे इसी सिलसिले में मेरी मुलाकात करायी गयी थी l  

Tuesday 9 May 2017

कृतित्व कभी मिटती नहीं

दरभंगा राज के पतन के बाद लोगों के जनमानस से करीब करीब लुप्त हो चुके  उनका कृतित्व के जगह  कई तरह की भ्रान्ति ने अपना स्थान बना लिया  था l  देवी कृपा से सर्वप्रथम दरभंगा राजपरिवार के शमशान  माधवेश्वर परिसर में महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह की चिता पर दरभंगा राज के अंतिम महाराजाधिराज डा . कामेश्वर सिंह द्वारा बनवाये गये लालपथर का भव्य मंदिर जिसमे माँ श्यामा  काली की विशाल  प्रतिमा प्रतिष्ठित हैं , ने लोगों को आकर्षित करना शुरू किया और लोगों के बीच आस्था का मुख्य केंद्र हो गया l  इसी के साथ भारत के महान साधक महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह की चर्चा होने लगी और राजनगर में बनाये गये उनके भव्य महलों और मंदिरों से युक्त परिसर की भूकंप से  हुई त्रासदी पर ध्यान गया  फिर बिहार के शताब्दी वर्ष में चौरंगी पर स्थित विशाल आदमकद मूर्ति पर लोगों का ध्यान गया फिर तो दरभंगा राज की चर्चा लोगों की जुबान पर आ गयी और दरभंगावाशी को दरभंगा राज पर फख्र होने लगा और फेसबुक के माध्यम से दरभंगा राज से सम्बंधित सकारात्मक तथ्य संग्रह होते चले गये जिसके सामने सब बौने नजर आने लगे l लोग दरभंगा राज के धरोहर को संरझित करने की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं और इस राज परिवार के कृतित्व ने पुनः इसे जनमानस में ला दिया l