बचपन से राजपरिवार में आने जाने का सौभाग्य मिला l बड़ी महारानी को बडकी काकीजी ,छोटी महारानी को छोटकी काकीजी ,महाराज को दादा, महाराज की इकलौती बहन को पिसियाजी और राजकुमार शुभेश्वर सिंह को शुभु भैजी कहा करते थे l रामबाग में बड़ी महारानी हमेशा भोज दिया करती थी जिसमे हमारे परिवार को निमंत्रण जरुर रहता था भला रहे भी क्यों नहीं हमारी दादी को काफी आदर था उस परिवार में वह महाराजा के मामी थी l राजमाता साहेब के ज़माने से हीं उनकी आदर था l राजमाता साहेब हमारे दादाजी यानि बाबा के छोटी बहन थी l मैं जब दो साल का था तभी महाराजा का निधन हो गया हमसे बड़े भाई जो चार पांच साल के थे महाराजा के साथ हीं रहते थे महाराज दरभंगा से बाहर कोलकाता , दिल्ली ,शिमला जहाँ भी जाते थे तो मेरी दादी और बड़े भाई साथ रहते थे l दादी कहती थी कि मुझसे छोटे भाई के जन्म के बाद महाराज ने कहा था कि अब रमण यानि मुझे भी अपने पास ले आयेंगें लेकिन वह सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हो सका l मेरे परिवार से स्नेह का कारण यह था कि महाराजा मेरे दादाजी यानि अपने बड़े मामा का बहुत आदर करते थे l दादी कहती थी कि महाराज उनका इतना लिहाज करते थे कि जब एकवार वे महाराजा से मिलने पहुंचे थे तो महाराज उस वक्त सिगार पी रहे थे जैसे हीं मामाजी को देखे तो सिगार पीठ के पीछे छिपा लिया जिसके कारण जिस सोफे पर बैठे थे वह जल गया था l इसीतरह एकवार मेरे दादाजी अपनी कार से महाराजा से मिलने आये . महाराजा ने उनके सर पर चोट देख कर पूछा तो उन्होंने सहज भाव से कहा कि कार में लग गयी थी l दरअसल हुआ यह था कि दादाजी लम्बे कद काठी के थे और कार छोटी थी l जब दादाजी विदा हुए तो उनकी कार पार्किंग की जगह पर नहीं थी वे अचकचा कर इधर उधर देखने लगे महाराजा समझ गये उन्होंने सामने खड़ी कार पर बैठ जाने का इशारा किया l वह कार दादाजी के कार से बड़ी थी पेनटैक् जो हमेशा के लिए दादाजी को दे दिया गया l
मेरे पिताजी एक साल के हीं थे कि दादाजी गुजर गये महाराजा ने इस गाड़ी को बेचवा कर उस रूपये को बाबूजी के नाम से टी - स्टेट में निवेश करवा दिया था l मेरे दादाजी के ड्राइवर गुरूजी जो मेरे हीं गाँव के कर्ण कयास्थ थे बाद में दरभंगा राज के एक्सक्यूटर पंडित लक्ष्मीकांत झा के ड्राईवर थे l मेरी दादी जिन्हें हमलोग दाई कहते थे ने एक वाकया सुनायी थी कि भारत पाकिस्तान के बंटवारे के समय वह महाराजा के साथ शिमला से महाराजा के सैलून से जब साथ साथ आ रही थे तो अंबाला से पीछे एक मुस्लिम जो जान बचाने का गुहार कर रहा था उसे महाराजा ने अपने सैलून में पनाह दे दी थी जिसके कारण अंबाला में आन्दोलनकारियों ने काफी बबाल मचाया लेकिन महाराजा के ए डी सी कर्नल माल सिंह ने स्थिति को संभाला था l
मेरे पिताजी का सिलेक्शन भारतीय थल सेना में कप्तान में हुआ था लेकिन एकलौता संतान रहने के कारण दादी की इच्छा नहीं थी l उन्होंने महाराज से मेरे पिताजी के विषय में बात की महाराजा ने बुलाकर कहा के बुधन से भेंट कर लो और महाराज के कोलकाता जाने वाली पार्टी में उनका टिकट ले लिया गया और महाराज के कोलकाता पहुँचने से पूर्व महाराज के पार्टी के साथ वे कोलकाता पहुँच गयेl महाराज जहाँ भी बाहर जाते थे उससे पहले महाराजा की पार्टी पहले पहुँचती थी l कोलकाता के दरभंगा एविएशन में मेरे चाचाजी जिन्हें हमलोग काकाजी कहते हैं मैनेजर के पद पर थे उन्ही के अधीन दरभंगा एविएशन में पिताजी की नौकरी लग गयी l महाराजा जब अंतिम बार कोलकाता आये थे तो उन्होंने पिताजी को कहा कि अब द्वारिका यानि हमारे काकाजी को दरभंगा में और तुम्हे यहाँ उनका काम सम्हालना है लेकिन ऐसा हो नहीं सका और दरभंगा लौटने के बाद महाराजा का निधन का समाचार मिला . समाचार सुनते हीं मेरे चाचाजी के साथ पिताजी तुरंत दरभंगा वापस लौट गये और दरभंगा में हीं रह गये l चाचाजी दरभंगा राज के राजकाज में व्यस्त हो गये और पिताजी दरभंगा में हीं राज मुख्यालय में नौकरी करने करने लगे l चाचाजी बाद में दरभंगा राज के ट्रस्टी बने और पिताजी लैंड डिस्पोजल ऑफिसर और दोनों भाई गिरीन्द्र मोहन रोड के बंगला न . ५ और १० जो सड़क के आमने सामने था, रहने लगे इसी रोड के बंगला न. १ में कुछ दिन के बाद राजकुमार जीवेश्वर सिंहजी आकर रहने लगे l हमारे बगल के बंगला में जिसमे आचार्य रमानाथ झा रहा करते थे उसमे मंझले राजकुमार अभी रहते हैं l बंगला न . ८ जो उसके बगल में था उसमे दरभंगा राज के सहायक मैनेजर पंडित दुर्गानंद झा रहते थे और उनसे कुछ आगे ठीक हराही के किनारे डैनवी कोठी में दरभंगा राज के मैनेजर मि . डैनवी पहले रहा करते थे l मेरा बचपन इसी गिरीन्द्र मोहन रोड में बिता और नरगोना पैलेस ,रामबाग बड़ी महारानी और छोटी महारानी के यहाँ आना जाना बना रहा l राजकुमार शुभेश्वर सिंह से मेरे पिताजी का अन्तरंग सम्बन्ध था उनका मेरे घर पर आना जाना रहता था और उनके बुलावे पर हमलोग क्रिकेट खेलने रामबाग जाते रहते थे l क्रिकेट, टेबल टेनिस , बिल्ल्यार्ड के वे अच्छे खिलाडी थे l हमलोगों से खुलकर बात करते थे और हमेशा भेंट स्वरुप देते रहते थे l जब मै बी . कॉम में पढ़ रहा था तो उन्होंने रामेश्वर ठाकुर जो प्रख्यात सी . ए थे और बाद में नेहरु परिवार से घनिष्ट सम्बन्ध रहने के कारण लोकसभा के सदस्य और केन्द्रिय मंत्री बने ,से मेरी मुलाकात कराते हुए मुझे सी ए ठाकुर जी के फार्म में करने का सुझाव दिए थे इसी सिलसिले में मेरी मुलाकात करायी गयी थी l
मेरे पिताजी का सिलेक्शन भारतीय थल सेना में कप्तान में हुआ था लेकिन एकलौता संतान रहने के कारण दादी की इच्छा नहीं थी l उन्होंने महाराज से मेरे पिताजी के विषय में बात की महाराजा ने बुलाकर कहा के बुधन से भेंट कर लो और महाराज के कोलकाता जाने वाली पार्टी में उनका टिकट ले लिया गया और महाराज के कोलकाता पहुँचने से पूर्व महाराज के पार्टी के साथ वे कोलकाता पहुँच गयेl महाराज जहाँ भी बाहर जाते थे उससे पहले महाराजा की पार्टी पहले पहुँचती थी l कोलकाता के दरभंगा एविएशन में मेरे चाचाजी जिन्हें हमलोग काकाजी कहते हैं मैनेजर के पद पर थे उन्ही के अधीन दरभंगा एविएशन में पिताजी की नौकरी लग गयी l महाराजा जब अंतिम बार कोलकाता आये थे तो उन्होंने पिताजी को कहा कि अब द्वारिका यानि हमारे काकाजी को दरभंगा में और तुम्हे यहाँ उनका काम सम्हालना है लेकिन ऐसा हो नहीं सका और दरभंगा लौटने के बाद महाराजा का निधन का समाचार मिला . समाचार सुनते हीं मेरे चाचाजी के साथ पिताजी तुरंत दरभंगा वापस लौट गये और दरभंगा में हीं रह गये l चाचाजी दरभंगा राज के राजकाज में व्यस्त हो गये और पिताजी दरभंगा में हीं राज मुख्यालय में नौकरी करने करने लगे l चाचाजी बाद में दरभंगा राज के ट्रस्टी बने और पिताजी लैंड डिस्पोजल ऑफिसर और दोनों भाई गिरीन्द्र मोहन रोड के बंगला न . ५ और १० जो सड़क के आमने सामने था, रहने लगे इसी रोड के बंगला न. १ में कुछ दिन के बाद राजकुमार जीवेश्वर सिंहजी आकर रहने लगे l हमारे बगल के बंगला में जिसमे आचार्य रमानाथ झा रहा करते थे उसमे मंझले राजकुमार अभी रहते हैं l बंगला न . ८ जो उसके बगल में था उसमे दरभंगा राज के सहायक मैनेजर पंडित दुर्गानंद झा रहते थे और उनसे कुछ आगे ठीक हराही के किनारे डैनवी कोठी में दरभंगा राज के मैनेजर मि . डैनवी पहले रहा करते थे l मेरा बचपन इसी गिरीन्द्र मोहन रोड में बिता और नरगोना पैलेस ,रामबाग बड़ी महारानी और छोटी महारानी के यहाँ आना जाना बना रहा l राजकुमार शुभेश्वर सिंह से मेरे पिताजी का अन्तरंग सम्बन्ध था उनका मेरे घर पर आना जाना रहता था और उनके बुलावे पर हमलोग क्रिकेट खेलने रामबाग जाते रहते थे l क्रिकेट, टेबल टेनिस , बिल्ल्यार्ड के वे अच्छे खिलाडी थे l हमलोगों से खुलकर बात करते थे और हमेशा भेंट स्वरुप देते रहते थे l जब मै बी . कॉम में पढ़ रहा था तो उन्होंने रामेश्वर ठाकुर जो प्रख्यात सी . ए थे और बाद में नेहरु परिवार से घनिष्ट सम्बन्ध रहने के कारण लोकसभा के सदस्य और केन्द्रिय मंत्री बने ,से मेरी मुलाकात कराते हुए मुझे सी ए ठाकुर जी के फार्म में करने का सुझाव दिए थे इसी सिलसिले में मेरी मुलाकात करायी गयी थी l
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