दरभंगा राज परिसर यानि रामबाग किला और वर्तमान कामेश्वर नगर जब आप टहलने या घुमने जायेंगें तो हर जगह मुख्य स्थान पर आपको मस्जिद ,मकवारा दिखने को मिलेंगें यहाँ तक कि लक्ष्मिश्वर पैलेस के बगल में मकवारा देख कर सोचेंगें कि एक कट्टर धार्मिक ब्राह्मण राजा के निवास के बगल में यह मकवारा कैसे ठीक उसी तरह मस्जिद को सहेजते बचाते किला का निर्माण कट्टर हिन्दू और मुस्लिम के गले नहीं उतरता l यह इसीतरह है जैसे अकवर के महल फतेहपुर सिकरी में तुलसी चौरा l
बहुत कम लोगों को पत्ता है कि मुग़ल सल्तनत के अंतिम वारिस का मकवारा दरभंगा के तत्कालीन महाराज ने दरभंगा में बनवाया था और अंग्रेज से बचा कर दरभंगा के काजीमुहल्ला यानि आजके कटहलवाड़ी में मकान और इबादत करने के लिए मस्जिद बनाया था l जब अंग्रेज १८५७ के ग़दर के बाद बहुदुर शाह जफ़र के परिवार का खून का प्यासा हो गया था तब दिल्ली से भागने के बाद जैबुरुद्दीन बहादुर की मुलाकात दरभंगा के महाराज लक्ष्मिश्वर सिंह से हुई थी ,महाराजा ने उन्हें दरभंगा आने का आमंत्रण दिया और पूर्ण सुरझा का भरोसा दिलाया उसके अगले साल जैबुरुद्दीन बहादुर दरभंगा तसरिफ लाये l उनके रहने के लिए राज परिसर से सटे काजी मोहल्ला में उनके रहने के लिए घर और इबादत के लिए मस्जिद का निर्माण राज ने कराया बहादुर शाह जफ्फर का यह वारिस अपने जीवन के अंतिम २९ वर्ष दरभंगा में बिताये जिसमे उन्होंने तीन किताब लिखी l मौज ए सुल्तानी उनमे एक है l १९१० में उनके देहांत हो गया दिग्घी टैंक के किनारे राजकिय सम्मान के साथ दफनाया गया और १९१४ में तत्कालिन दरभंगा के महाराज भारत धर्म महामंडल के प्रमुख रमेश्वर सिंह ने लाल पत्थर का खुबसूरत मजार बनवाया l
गौहर जान और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान राज परिवार
के मांगलिक अवसर पर आपनी प्रस्तुति देते थे l ये कम ही लोगों को मालूम होगा कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के शिखर पर पहुंची गौहर जान ठुमरी और भजन गाया करती थी l गौहर जान दझिण एशिया की पहली गायिका थी जिनके गाने ग्रामोफ़ोन कम्पनी ने रिकॉर्ड किये l दरभंगा राज ने जहाँ अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय को सहायता दी वहीँ हिन्दू विश्वविद्यालय को संरंझन l दरभंगा में जहाँ मंदिरों को वित्तीय साधन उपलब्ध कराये गये वहीँ करवला को चंदा दी जाती रही l
बहुत कम लोगों को पत्ता है कि मुग़ल सल्तनत के अंतिम वारिस का मकवारा दरभंगा के तत्कालीन महाराज ने दरभंगा में बनवाया था और अंग्रेज से बचा कर दरभंगा के काजीमुहल्ला यानि आजके कटहलवाड़ी में मकान और इबादत करने के लिए मस्जिद बनाया था l जब अंग्रेज १८५७ के ग़दर के बाद बहुदुर शाह जफ़र के परिवार का खून का प्यासा हो गया था तब दिल्ली से भागने के बाद जैबुरुद्दीन बहादुर की मुलाकात दरभंगा के महाराज लक्ष्मिश्वर सिंह से हुई थी ,महाराजा ने उन्हें दरभंगा आने का आमंत्रण दिया और पूर्ण सुरझा का भरोसा दिलाया उसके अगले साल जैबुरुद्दीन बहादुर दरभंगा तसरिफ लाये l उनके रहने के लिए राज परिसर से सटे काजी मोहल्ला में उनके रहने के लिए घर और इबादत के लिए मस्जिद का निर्माण राज ने कराया बहादुर शाह जफ्फर का यह वारिस अपने जीवन के अंतिम २९ वर्ष दरभंगा में बिताये जिसमे उन्होंने तीन किताब लिखी l मौज ए सुल्तानी उनमे एक है l १९१० में उनके देहांत हो गया दिग्घी टैंक के किनारे राजकिय सम्मान के साथ दफनाया गया और १९१४ में तत्कालिन दरभंगा के महाराज भारत धर्म महामंडल के प्रमुख रमेश्वर सिंह ने लाल पत्थर का खुबसूरत मजार बनवाया l
के मांगलिक अवसर पर आपनी प्रस्तुति देते थे l ये कम ही लोगों को मालूम होगा कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के शिखर पर पहुंची गौहर जान ठुमरी और भजन गाया करती थी l गौहर जान दझिण एशिया की पहली गायिका थी जिनके गाने ग्रामोफ़ोन कम्पनी ने रिकॉर्ड किये l दरभंगा राज ने जहाँ अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय को सहायता दी वहीँ हिन्दू विश्वविद्यालय को संरंझन l दरभंगा में जहाँ मंदिरों को वित्तीय साधन उपलब्ध कराये गये वहीँ करवला को चंदा दी जाती रही l
Sir wo jo qabr sanskrit university ke campus m h wo karam ali khan ki h jo darbhangi khan ke dada lagte the
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