Saturday 1 July 2017

भारत के महान साधक

तिरहुत सरकार महाराजा महेश्वर सिंह का देहान्त १८ ६ ० में जब हुआ उस समय उनके दोनों पुत्र बहुत छोटे थे बड़े सरकार लक्ष्मिश्वर सिंह  का उम्र २ साल  और छोटे सरकार रमेश्वर सिंह का एक साल भी पुरे नहीं हुए थे l अंग्रेजी हुकूमत ने मिथिला के इस राज  को  वार्ड  ऑफ़ कोर्ट के अधीन ले लिया और  युवराज लक्ष्मिश्वर सिंह  को अपने देखरेख में  और माता से भी मिलने पर पाबन्दी लगा दी l  अंग्रेजी शिझक  प्रमुख शिझाविद मिस्टर चार्ल्स मैकनाघटेन (Macnaghten), मिस्टर  जे . एलेग्जेंडर और कैप्टेन एवंस गॉर्डोन   का बंदोबस्त कर दिया l दरभंगा राज के वे दोनों भाई  पहले राजा हुए जिन्हें अंग्रेजी तालीम दी गयी  और राज का शासन  १८८० तक अंग्रेजों के अधीन होने लगा और  माता के विरुद्ध अंग्रेजी शिझक से पढाई दी जाने लगी l राजमाता ने इसका कड़ा विरोध किया और युवराज का स्थानीय अभिभावक युवराज के निकटतम चाचा को बना दिये जिन्होंने अपनी संस्कृति के अनुरूप  शिझा-दिझा संस्कृत के प्रमुख विद्वानों द्वारा   दोनों राजकुमारों  को देने की  अलग से  व्यवस्था की l  बाद में देश की धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी बनारस के क़ुईन्स कॉलेज में पढाई की  जिसका फलाफल हुआ कि रमेश्वर सिंह संस्कृत एवं हिन्दू संस्कृति के तरफ आकर्षित हुए और  ब्राह्मण  संस्कृति के अनुरूप पूजा पाठ और   आध्यात्म  उनकी पहली अभिरुचि हुई l अंग्रेजी ,फारसी  में भी उनकी अच्छी पकड़   थी l बालिग होने पर बड़े भाई लक्ष्मिश्वर सिंह दरभंगा  महाराज की गद्दी पर  आसीन हुए  और राजा रमेश्वर सिंह  १८७८ में  भारतीय सिविल सेवा में चले गये और दरभंगा , छपरा और भागलपुर में असिस्टेंट मजिस्ट्रेट रहे  l इसी दौरान ब्रिटिश हुकूमत के अंग्रेज पधाधिकारियों से मित्रता हुई जिन्हें वे हिन्दू संस्कृति ,अध्यात्म के विषय में जानकारी दी और अंग्रेज के आधुनिक औद्योगिक ,व्यापार ,तकनिकी की जानकारी प्राप्त की l उन पदाधिकारियों में जॉर्ज ग्रिएरसन (प्रमुख भाषा शास्त्री ) , इ .ए. गेट  जो बाद में नवनिर्मित  बिहार राज्य  के उप राज्यपाल हुए  आदि जो उनके सहकर्मी थे यानि भारतीय सिविल सेवा के पदाधिकारी l  उन्हें दरभंगा से दूर बछोर परगना दिया गया l इन्होने राजनगर में अपना राज प्रसाद बनाया  जिसकी भव्यता राजा जनक की राज की याद दिलाती थी l दरभंगा के महाराज बड़े भाई लक्ष्मिश्वर सिंह की मात्र ४० वर्ष की आयु में मृत्यु के बाद १८९८ में ३८ वर्ष की आयु में दरभंगा की राजगद्दी पर आसीन हुए तबतक उन्हें कोई संतान की प्राप्ति नहि हुई थी l उन्होंने कामरूप कामख्या  में  संतान की प्राप्ति हेतु तंत्र साधना की थी जिसके बाद उन्हें तीन संतान की प्राप्ति हुई l  उनका काफी समय आध्यात्म और पूजा पाठ में व्यतीत होता था l दरभंगा राज का कामकाज काफी विस्तृत रहने के कारण सिविल सेवा से त्यागपत्र देकर अपना पूरा समय मिथिला राज ,हिन्दू संस्कृति ,आध्यात्म में देने लगे l हिन्दू संस्कृति को देशभर में फ़ैलाने के लिए  दि हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी ,आध्यात्म के फ़ैलाने हेतु अगम अनुसंधान समिति कोलकाता  जो संस्कृत के ग्रंथों का अंग्रेजी अनुवाद कर प्रकाशित करती थी ,  धर्म को देशभर में फ़ैलाने हेतु भारत धर्म महामंडल जिसका मुख्यालय बनारस था और देश के सभी जगह इसकी ब्रांच कार्यालय थी  और मैथिलि के लिए मैथिल महासभा की स्थापना कर देश में अंग्रेजी शिझा  और सभ्यता को एक तरह से चुनौती देने का काम किये और राष्ट्रवाद को एक ताकत दी l हिन्दू राजाओं यथा नेपाल ,ग्वालियर ,कश्मीर ,जयपुर  उन्हें अपने  धार्मिक और  अध्यात्मिक गुरु के रूप में देखते थे  और उनपर श्रद्धा रखते थे  l सिख शासक महाराजा पटियाला से जहाँ उनकी  मित्रता थी वहीँ बोम्बे के आगा खां उनकी आगवानी करते थे l  हिन्दू ,सिख ,जैन , मुसलमान धर्म के  माने हुए प्रमुख व्यक्ति के प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व किये और कोलकाता और इल्लाहाबाद में हुए  सभी धर्मो और संप्रदाय के बीच एकता हेतु पार्लियामेंट ऑफ़ रिलिजनस की बैठक की सभापतित्त्व किये l   पहली आल -इंडिया ब्राह्मण कांफ्रेंस ,लाहौर की सभापतितव किये l   देश के कई हिस्से में कल कारखाने लगा कर औद्योगिक क्रांति की आगाज की l   वहीँ खेती के विकास के लिए  देश के जमीन मालिकों  का एक देशव्यापी  संगठन बनाये l मिथिला राज्य की मांग करते हुए बिहार के राज्यपाल के माध्यम से दी गयी ज्ञापन में उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किये कि उन्हें लौकिक के साथ आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त हैl इन्होने अपनी अध्यात्मिक शक्ति से नदी की दिशा बदल दी थी जिसका  उल्लेख बंगाल उच्च न्यायलय के जज जॉन वुडरुफ्फ़ ने अपनी पुस्तक (BENGAL AND TANTR) में की है l उनके तीन प्रमुख संस्था दि हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी ,भारत धर्म महामंडल और अगम अनुसंधान समिति क्रमशः ऍम . ऍम . मालवीय ,गोपाल कृष्ण गोखले ,दीनदयाल शर्मा ,आर्थर अवलोन के  द्वारा  संचालित होता था जिसके महाराज रमेश्वर सिंह संस्थापक अध्यझ एवं मुख्य वित् पोषक थे l  

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