Sunday, 12 October 2014

यज्ञोपवीत समारोह

दरभंगा को समझने के लिए समय , स्थान  और सन्दर्भ को जानना जरुरी  है।शादी समारोह की चर्चा तो हमने खूब सुनी है आज मैं दरभंगा में हुए एक  यज्ञोपवीत का चर्चा करेंगे। ६ फ़रवरी से ९ फरवरी १९४१ को दरभंगा में हुए इस यज्ञोपवीत में   जयपुर , जोधपुर , बनारस ,ग्वालियर,धौलपुर , कश्मीर ,टेकारी ,त्रिपुरा ,कूचबिहार ,मयूरभंज ,डुमराऊँ ,बर्दवान ,नेपाल , कसिमबाज़ार ,रामगढ ,छोटानागपुर ,मुंगेर, शिवहर ,  कपूरथला ,हैदराबाद,पयागपुर ,ओइल ,पंसबकोटे,पटियाला   आदि के  राजा - महाराजा तथा उनके प्रतिनिधि  ,डा राजेंद्र प्रसाद,सर्वपल्ली राधाकृष्णन ,नवाब सर के जी  ऍम  फारूकी , माननीय राजयपाल बिहार ,माननीय हूसैन इमाम ,रायबहादुर राधाकृष्ण जालान ,पंडित  दौर्गादत्ती शास्त्री ,गोस्वामी गणेशदत्तजी ,महामहोपाध्याय पंडित हरिहर कृपालु ,के पी सिन्हा ,I.C.S ,रायबहादुर एस  एन  सहाय ,M.L.A   ,रायबहादुर श्रीनारायण मेहता , रायबहादुर लाला रामसरन दास ,एन सेनापरी ,I.C. S ,एस.एम. धर ,I.C.S ,सी.पी.एन सिन्हा ,M.L.A ,  महामहोपाध्याय डा. सर गंगानाथ झा ,डा.अमरनाथ झा, जैसे देश के गणमान्य लोगों ने शिरकत की। इस समारोह में किया सब कार्यक्रम हुआ यह थोड़ी देर में। पहले  बता दूँ कि  उन्हें दरभंगा में कहाँ ठहराया गया था।  आनन्दबाग बाग और रामबाग पैलेस को छोड़कर   नरगौना  पैलेस ,बेला पैलेस ,राज गेस्ट हाउस (वर्तमान में महात्मा गांधी अतिथिशाला ),विश्राम कुटीर ( इनकम टैक्स ऑफिस ),लालबाग़ गेस्ट हाउस ,हराही हाउस ,बंगला नंबर ६ डेनबी रोड और गिरीन्द्र मोहन रोड स्थित बंगलों  और रेलवे सैलून,कैंप मानसरोवर ,राज मैदान , विशेश्वर मैदान में अतिथियों का ठहरने का इंतजाम था. अतिथियों को लाने- ले- जाने के लिए बग्घी , सजे हुए हाथी का रथ तथा कार मौजीद थे , इन सभी ठहरने के जगहों पर चाय- नाश्ता और   खाने का बंदोबस्त था।अतिथियों की आगवानी  महाराजा कामेश्वर सिंह और राजा बहादुर विशेस्वर सिंह पाग के साथ  मिथिला के परिधान में  हवाई अड्डा ,रेलवे स्टेशन पर स्वयं कर रहे थे।  रामबाग में  ८. ३० बजे पूर्वाह्न से २. ३० बजे अपराह्न  में वैदिक समारोह ,३ बजे से टेनिस ,स्क्वाश ,स्पोर्ट्स,कुश्ती ,पोलो ,फुटबॉल,शाम में   आतिशबाजी , बैंक्वेट ,संस्कृत ड्रामा ,हिंदी फिल्म' स्ट्रीट सिंगर'  ,ख्याति प्राप्त नर्तक उदयशंकर का भारतीय शास्त्रीय नृत्य ,कैब्रेट ,पंडितों को  राधाकृष्णन का सम्बोधन और धोती भेंट कर सम्मानित किया जाना ,उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का शहनाई वादन ,शास्त्रीय संगीत तथा आनन्दबाग में गार्डेन पार्टी  का आयोजन चारों दिन था।रौशनी से जगमगता सड़क ऐसा कि सुई भी गिरे  रात में तो  मिल जाय. रामबाग के आंगन के जिस मंडप पर वैदिक कार्यक्रम था उसी के बगल में सामानांतर पक्का चबूतरा राजा - महाराजा  के बैठने के लिए था। दरभंगा देश - विदेश के अतिथियों से अट्टापट्टा था कोई दरभंगा की   खूबसूरती और वैभव देख कर मंत्रमुग्ध था तो कोई इस शहर के भाग्य से ईष्या कर रहा था परन्तु कुछ गरीबों के लिए सोच रहे थे। 
   इसी कालखण्ड में ७ फ़रवरी को १२. १० बजे कामेश्वरी प्रिया पुअर होम का उद्घाटन महामहिम राज्यपाल,बिहार द्वारा दरभंगा  में हुआ।     


Sunday, 31 August 2014

THE DARBHANGA IMPROVEMENT TRUST BILL,1934



महाराजा ने  हराही और उससे लगे गलीच /गंदा इलाके  को सुन्दर, स्वास्थ्यकारक और   प्लांड रूप देने के साथ हीं तत्कालीन सरकार को  राज ऐरिया को छोर कर शेष शहर को अधुनिक शहर के अनुरुप सुधारने हेतु    जिला पदाधिकारी मिस्टर टी .ए. फ्रेस्टन के माध्यम से महामहिम राज्यपाल बिहार और उडीसा को  प्लांड सिटी बनाने हेतु २५ लाख रूपये देने का प्रस्ताव रखा   जिससे शेष  शहर का विकास प्लांड तरीके से हो जिसके लिए सरकार की तरफ से इम्प्रूवमेंट स्कीम के लिए डाटा संग्रह का कार्य प्रारंभ किया गया .जैसे हीं महाराजाधिराज के प्रस्ताव की जानकारी लोगों को हुई कई तरह के अफवाह दरभंगा वाशियों में उड़ने लगे और इम्प्रूवमेंट स्कीम ट्रस्ट के विरुद्ध आन्दोलन शुरू हो गये थे . आंदोलनकारी मुख्यतः दरभंगा के  मुस्लमान और मारवाड़ी थे . वे लोग कुछ तो आंशिक रूप से स्व हित और कुछ  गलत अवधारणा से अविभूत होकर  डर रहे थे .वे लोग सोच रहे थे कि महाराजा लोक हित के विपरीत और स्वंय की उन्नति हेतु ऐसा करवा रहे है . विस्तृत व्यौरा के अभाव में वे लोग एक अपनी विचार बना लिए कि किया होने जा रहा है .  हिन्दू महासभा के कार्यकारी अध्यझ डा . बी . एस . मुंजे लोगों के आन्दोलन की जानकारी लेने के लिए दरभंगा आये थे को महाराजा ने अपनी भेंट में स्पष्ट किया कि उनका टाउन प्लानिंग प्रस्ताव से इतना हीं नाता है कि दरभंगा को उन्नत और आधुनिक शहर के अनुरूप करने हेतु २५ लाख रुपया देने का प्रस्ताव सरकार को दिए हैं शहर को उन्नत करने की पूरी प्रक्रिया सरकार लोगों के विचार से करेगी. डा. मुंजे ने लोगों को  महाराजा को जहाँ इस उदारता हेतु  धन्यबाद देना चाहिए वोहीं  लोग अनावश्यक संदेह पाले है उन्होंने महाराजा को सलाह दिए कि लोगों के आशंका को दूर करने हेतु जनता में एक अपनी बयान जारी करें ताकि लोगों की आशंका ख़त्म हो जाय. सरकार द्वारा    दरभंगा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बिल ( बिल नंबर ७ /१९३४  बिहार विधान परिषद् में सरकार की ओर से ३ सितम्बर को  बिल प्रस्तुत करते हुए मिस्टर डब्लू . बी . ब्रेट ने अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि भूकंप के बाद दरभंगा के महाराजाधिराज ने आगे बढ़ कर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट को एक बड़ी पूंजी देने का प्रस्ताव दिए है जिससे शहर के तंग और संकरी वस्तियों को फिर से इस रूप में प्लान कर बनाया जाय जिससे निवाशियों को पिछले भूकंप में जो त्रासदी और जान-माल की नुकसान हुई वह नहीं हो . दरभंगा को इम्प्रूवमेंट स्कीम क्यों चाहिए इस सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि जिन्होंने पिछला भूकंप नहीं देखे वही ऐसा कह सकते है .यह शहर दो भाग से बना है . दरभंगा और लहेरियासराय जो काफी खुला है और सड़कें चौड़ी हैं लेकिन कुछ भाग काफी तंग हैं जो पश्चिम में बाजार का इलाका है बड़ी बाजार से कतकी बाजार होते हुए गुदरी बाजार . इस झेत्र के लिए इम्प्रूवमेंट स्कीम की सख्त जरुरत है . भूकंप से पहले यह काफी घनी भीड़ वाला बाजार था जहाँ संकरी सड़क थी वैसे कुछ मजबूत ईमारत हैं लेकिन अधिकांश पुराने और छोटे – छोटे दुकान थी . इतनी भीड़ रहती है कि दम लेने की जगह नहीं मिलती ऐसे में जैसा कि भूकंप आया था इन तंग गलियों में जैसा कि मुंगेर में त्रासदी हुई यदि लोग घर से निकलें तो मकान के मलवे सर पर गिरने से कुचले जायेंगें कियोंकि कोई खुला जगह नहीं है जहाँ वे शरण ले सकें वैसे विगत ३-४ महीने में मुझे कई सुझाव प्राप्त हुए है कुछ का सुझाव है कि पक्के कंक्रीट का घर बने ,कुछ का कहना है कि ऐसा घर बने जो भूकंप में झूल जाय लेकिन एक मुर्ख आदमी के नाते मैं मानता हूँ कि सबसे बेहतर है कि दौर कर जितना जल्दी हो खुले जगह पर आ जाएँ जहाँ आपके ऊपर कुछ गिरने का खतरा न हो लेकिन बड़ी बाजार के लीगों को यह सलाह देना मजाक होगा कल्पना कीजिए १० फीट के सड़क पर  हजारों लोग आ भी जाएँ तो आगे नहीं बढ़ सकते . उनके लिए बाहर निकलने के बाद भी कोई आस नहीं बचेगी इसिलिय जरुरी है कि ये बाजार फिर से बने , रोड बने जिससे इन लोगों की सुरझा की संभावना हो . इसिलिय इम्प्रूवमेंट स्कीम चाहिए . चाहिए नम्र शब्द होगा यूँ कहिये कि यह जीवन – मरण का मामला है यदि आज की पीढ़ी को नहीं तो निश्चित रूप से उनके आनेवाले पीढ़ी के लिए .    जिसे ७ सितम्बर ,१९३४ तक रिपोर्ट देने हेतु   सेलेक्ट कमिटी को सौंपा गया जिसमे श्री सच्चिदानंद सिन्हा , मौलवी शेख मुहम्मद शफी , मौलवी मुहम्मद हस्सन जन , राय बहादुर श्यामानंद सहाय , बाबु चंद्रेश्वर प्रशाद नारायण सिन्हा , मिस्टर डब्लू . जी . लकी और कुमार गंगानंद सिन्हा सदस्य थे . सेलेक्ट कमिटी के रिपोर्ट के बाद दरभंगा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बिल सदन से बिल के पझ और बिपझ में लम्बी बहस के बाद १८ सितम्बर १९३४ को यह बिल पारित हुई और ट्रस्ट अगले नवम्बर से कार्य करने लगी . मुहम्मद शेख शफी ने बिल में संसोधन का प्रस्ताव दिया था  जिसका विरोध डा . सच्चिदानंद सिन्हा ने किया और मौलवी मुहम्मद हस्सन जन ने भी किया मौलवी हस्सन जन ने कहा कि यदि कोई असुविधा कुछ लोगों को होती भी है तो एक पुनीत कार्य के लिए इसे शहर के हित में वहन करना चाहिए वरना झेत्र की प्रगति कभी नहीं हो सकता  ,राय बहादुर द्वारिकानाथ जो तिरहुत डिवीज़न  नगरपालिका से सदस्य थे ने भी बिल के कभी समर्थन में थे तो कभी विरोध में थे लेकिन उन्होंने लोगों की  अवधारणा जो इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट महाराजाधिराज और दरभंगा राज के इशारे पर लाया गया है  को गलत कहा उन्होंने कहा की ट्रस्ट बोर्ड के ६ सदस्य में उन्हें  मात्र एक को मनोनीत करने का  अधिकार है .बाबु निरसु नारायण सिन्हा ने भी समर्थन किया ,बाबु हरेकृष्ण चौधरी ने भी समर्थन किये ,मौलवी मुहम्मद अब्दुल घनी ने पूजा और इबादत के स्थान को लेकर प्रस्ताव दिए जिसपर सरकार की ओर से स्पष्ट किया गया कि पूजा स्थान यथावत रहेंगें   . डा . सच्चिदानंद सिन्हा ने दरभंगा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट बिल का पुरजोर समर्थन किये . जिसमे बाजार का विस्तार ,रोड का चौरीकरण , पार्क ,स्वस्थ्य- अस्पताल  ,पर्यावरण ,जल निकासी ,जलापूर्ति , विधुत आपूर्ति , का समुचित प्रबंध था उन्होंने कहा की भारत में लोक हित में हमारे अमीर पैसा नहीं खर्च करते जैसा कि दुसरे देशों में लोग खर्च करते हैं उन देशों में लोक भावना अपने देश से ज्यादा हैं हमारे देश में जहाँ अधिकांश लोग गरीब हैं धनवान लोगों को पैसा लोक हित में लगानी चाहिए और इस कार्य को सराहना होनी चाहिए . महाराजाधिराज का इस आपदा के समय शानदार  सराहनीय कार्य के लिए दान का लाभ उठाने हेतु बिल को पारित कराने को कहा  .पुरे दरभंगा- लहेरियासराय का हवाई सर्वे कराने के बाद कोलोनेल टेम्पले और महाराजा ऑफिस के सहयोग से  दरभंगा के प्लान को अमली जामा दिया गया था  .लेकिन जबतक ट्रस्ट अपना काम पूरा कर पाती  एक नई शासन व्यवस्था पर्दुभाव ले रही थी समाज के अदूरदर्शी लोगों के कारण गोल मार्केट में कॉलेज खुल गया . कटकी बाजार और बड़ी बाजार शिफ्ट नहीं हो सका . उन दोनों बाजार के सड़क संकरी हीं रह गयी जहाँ १९८८ के भूकंप में फिर से जानमाल की क्षति हुई . लालबाग राज स्कूल के  बगल का पार्क अपने रहनुमा का इंतजार हीं करता रहा .अजीमाबाद पार्क में कॉलेज




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Thursday, 19 June 2014

MEMORIAL TO THE EXCELLENCY THE RIGHT HONOURABLE BARON SINHA OF RAIPUR , Governor of Bihar & Orissa From Maharajadhiraj of Darbhanga in 1921.

MAY IT PLEASE YOUR EXCELLENCY,--
      1.On this a rare, memorable occasion when His Most Gracious Majesty's greatest gift to this Ancient and Great Country--- a New Age of rights and privileges---is being introduced through Royal Representatives of His Majesty bringing a message of hope.peace and good-will to this country, may I invite Your Excellency and through Your Excellency the Imperial Government to give kind attention to a question which though primarily a personal question is yet a question is  its general aspect intimately connected with the scheme of self government for this country of ancient histories and tradition?
    2.To begin the question, I am deeply grateful to Government for the honours and distinctions which have been conferred upon me from time to time ;but there yet remains that question of great importance to me and to my House--- the question of restoration of the ruling powers enjoyed by my forefathers before the East India Company took possession of North Bihar, which I beg leave to submit hereby for consideration
    3..Representatives of public opinion both here and in England have pointed out the advantages, desirability, and claims of certain class of ancient families and tracts to be erected into Ruling Houses and Principalities. That desirability seems to have received recognition also from such high authority as the Right Hon'ble Mr. Montagu, who on the 10th of July,1917, speaking before the House of Commons about the would-be.constitutional India described it as "the great self-governing dominions and provinces of India organised and co-ordinated with great principalities-- the existing principalities, and perhaps new ones.-- not one great Home Rule Country but a series of self - governing provinces and principalities federated by one Central Government."
     4.There are tracts in this country which by reason of history, associations, traditions,language and similar factors are marked out as distinct political individualities. It is submitted that it is those tracts to which the Reform should be extended in the first instance in the way of erecting  "New Principalities." In other words, where tracts had been organisms-- "principalities"-- in the near past, where life is still traceable in traditions and institutions, the scheme of self-government in this aspect be applied to them and the tracts be revived in full life, into full political persona.
   5. I beg to submit that the necessary conditions,enviornments and qualifications are to be found in the part of Tirhut which has been known as Mithila since Vedic times-- since the facts related in the Epics (the Ramayana and Mahabharata ). It lies mainly in the districts of Darbhanga and Muzaffarpur extending north right up to the foot of the Himalayas. It stands out in Northern Bihar by its history, language (Maithili)and literature as a national unit , a separate entity. It has been the seat of a Hindu kingdom since earliest times. Mostly the kingdom of Mithila was territorially identical with Tirhut; at times that kingdom included the whole of Northern  Bihar and beyond. Under my own ancestors the whole of Sirkar Tirhut, greater portion of the district of Purnea,a portion of north Bhagalpur and also a small portion of Champaran, had come within its limits. For centuries even before the rise of my House, the rulers of Mithila had been Brahmins. Its literature flourished under them and continued under my House; it is distinctly national. So is the very language and script in which that language is written.. No other unit in India continued the Hindu tradition unbroken in Muhammadan times up to the advent of the British Power. Mithila alone can claim to have been the intact home of orthodox Hindu civilisation, where even scribes wrote documents in Sanskrit up to the 18th century, where Hindu Law was administered by Hindu Lawers until the Dewany, where Hindu philosphies and sciences are studied in every village even to-day.
    6. Sirkar Tirhut then comprised 84 Parganas covering the greater parts of the districts of Darbhanga and Muzaffarpur. The boundries of the Sirkar in the grant of Mm Mahesh Thakur are said to have been "At Ganga to Sang-- As kosa to Ghosa,"that is, from the Ganges in the south to the mountain in the north-- from the river Kosi in the east to the Gandak in the west. This couplet laying down the boundries is printed in the Survey Settlement Report of the Purnia district. By subsequent grants to my ancestors by the Moghul Emperors about half of Purnia and a portion of Bhagalpur was added to their territories.
       7. Mithila, if not the whole of Tirhut, has thus the strongest claims to be raised again into its former political persona-- an Indian State..

Saturday, 1 March 2014

सर एडवर्ड अल्वर्ट गेट जो 1912 में बंगाल से अलग बिहार एवं उड़ीसा राज्य के सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली के बाद दूसरे और अंतिम  (चौथे) लेफ्टिनेंट गवर्नर (उप राज्यपाल )  के पद पर 19. 11. 1915 से 4. 4. 1918 एवं  12. 8. 1918 से 29. 12. 1920 तक रहे थे ,ने 18 दिसम्बर 1920  को महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह को  महामहिम वाइसराय और भारत के गवर्नर जनरल द्वारा  महाराजाधिराज का उनके वंशानुगत टाइटल प्रदान किये जाने  की  सुचना देते  हुए जो  पत्र लिखा उसमे उपराज्यपाल ने हाल में  पटना में मेडिकल कॉलेज के स्थापना के लिए उदारतापूर्वक ५ लाख रूपये का दान  दिये जाने का भी उल्लेख किया है।साथ हीं उन्होंने  काफी लम्बे समय से दोस्त होने और ५ वर्षों तक सहकर्मी रहने और   साथ साथ काम करने का भी जिक्र किया है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि आपके पूर्वज मुग़ल बादशाह के अधीन तिरहुत के शासक थे और वर्त्तमान समय में आपका एस्टेट प्रान्त के अन्य कोई झेत्रिय सामंत से काफी विस्तृत है। आप श्रोत्रिय ब्राह्मण के प्रधान हैं और उत्तर भारत के सम्पूर्ण ब्राह्मण समुदाय के नेता के रूप में आपकी  पहचान है। 
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Sunday, 16 February 2014

दरभंगा राजक पूर्व रैयतगण क प्रति महाराजाधिराज श्री कामेश्वर सिंह क संदेश।


दरभंगाक पूर्व रैयतगण।
लगभग ४०० वर्ष पूर्व भारत क सम्राट अकबर हमर पूर्वज म.म.उपाध्याय महेश ठाकुर के हुनक पांडित्य सं मुग्ध भ 'सरकार -ई -तिरहुत ' क शासन भार देलथिन्ह। अंग्रेजी आधिपत्य स्थापित हयबासन पहिने धरि कुलाचारक अनुसरण करैत हमर पूर्वज गण ऒही रुपे एहि झेत्र में राज्य कयलैन्ह। ईस्ट इंडिया कम्पनी तत्कालीन हमर पूर्वज के शासनाधिकार सन वंचित करवाक पूर्ण प्रयास कयल। २० वर्ष धरि संघर्ष चलल। परन्तु जे शक्ति भारत सम्राट क आसन्न डोला देने छल ओहिसँ पार पायब कोना सम्भव छल - अपेझाकृत न्यून शासनाधिकारिक हेतु सुलह भेल ;और तकर परिणामस्वरूप पहिला झेत्रक पचमांश झेत्र पर हुनका जमींदारी -हक़ देल गेलैन्ह। राजस्व मलेहाजी निश्चित भेलैन्ह ,और जे भू -भाग अपहरण भेल छलैन्ह तकरा स्वीकार करैत अंग्रेज सरकार निश्चित रूप सँ मालिकाना देब गछलकैन्ह।  तहिया सँ आई धरि एहि रूपक सम्बन्ध हमरा और अहाँ लोकनिक बीच वंशानुक्रम सँ चल अबैत छल।  एही बिच में रैयती कानून सभ सँ तथा कृषि कर तथा सेस व्रद्धि क कारणे वस्तुस्थिति में महान परिवर्तन भेल गेल ; तथापि बाहरी रूप रेखा यथास्थित रहल।
 गत पंद्रह वर्ष सँ वैयक्तिक जमींदारी प्रथा क अंत करवाक भारतव्यापि उद्योग जोरशोर सँ भय रहल अछि। आई शासन - सत्ता जनताक हाथ में छैक।  जनता जिनका अपन प्रतिनिधि बनाय शासन करवाक भार देने छैन्ह हुनक अधिकांश एहि प्रथाक अन्त शीघ्रताशीघ्र करय चाहैत छथि।  किछु दिन पूर्व ई विषय भय गेल।  एहि प्रकारेँ व्यक्त जनता क इच्छा क अबहेलना कोण देशभक्त नागरिक कय सकैत अछि ? ककरो अधिकार देब वा ककरहु अधिकारक अपहरण करब सुव्यवस्थित परिस्थिति में शासन -सत्ताधिकारिक हाथ में रहयत छैक।  अतएव , जखन संविधान क संशोधन बिहार जमींदारी उन्मूलन कानून कें ,जकरा बिहार क उच्च न्यायलय अवैध घोषित कयने छल , वैध बनयबाक हेतु …  जायत छल , तखन हम भारतक प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू के लिखि देलियैन्ह जे हम न्यायलय क शरण आब नहीं लेब।  ओ जे न्याय -संगत बुझथि से करथि।  फलतः बिहार जमींदारी उन्मूलन कानूनक अनुसार ई प्राचीन राज बिहार सरकारक हाथ में चल गेलैक।
 अहाँ लोकनि सँ वंशपरम्पराक एतेक दिनक सम्बंध छुटवाक सँ हमरा असीम दुःख अछि परन्तु संतोष केवल अहि विषय लय क होयत अछि जे हमरा और अहाँक लोकनिक बीच जे मतभेद छल से नहीं रहत और वर्गभेदक कारणे जे विषमता अनिवार्य रूपे  उत्पन्न होयत छल से हो नहीं होयत।  ताहि सँ  ई हो सम्भव जे हमरा लोकनिक सम्बन्ध औरो  घनिष्ठ  भय जाय। हम अहि अवसर पर एतबे कहब जे हमरा सँ अथवा हमर कर्मचारीगण सँ जे त्रुटि भेल हो तकरा विसरी जयवाक उदारता अहाँ  लोकनि देखाबी ;और मालिकक स्वरुप में नहि भाईक स्वरुप में सदा हमरा और हमर परिवारक लोक केँ अहाँ लोकनि  अहाँ क  परिवारक लोक देखैत रही।
                                                                                                    --श्री कामेश्वर सिंह
Indian Nation Press ,Patna