It is to the peculiar culture of Mithila where since the time of Janaka kings delighted in being learned like priests and priests became kings, where kings and queens preferred to be scholars-- it is to that peculiar history which ' does not centre round valiant feats of arms, but round Courts engrossed in the luxurious enjoyment of literature and learning' ,Mithila still holding Courts where poetry and learning were alone honoured.( Journal of the Bihar and Orissa Research Society,VI ,258.)
Saturday, 10 July 2021
माधवेश्वर प्रांगन
Friday, 9 July 2021
गौरवशाली अतीत
शास्त्र ज्ञान के साथ मिथिला
की संस्कृति में खेल का प्रमुख स्थान रहा
है. विवाह के बाद कोजगरा के भार में कन्या पक्ष के तरफ से खेल की सामग्री यथा उस ज़माने में घर घर में खेले जानेवाला पच्चीसी
और शतरंज आदि खेल की सामग्री भेजी जाती थी. उस ज़माने के प्रमुख घरों के फर्श पर चौपड़ बना होता था या फिर शतरंज का
बोर्ड . गाँव गाँव में कुश्ती के लिये
अखाड़ा होता था . घुड़ दौर पोखर कई गाँव में देखे जाते हैं . नये खेलों के प्रति भी मिथिला के लोगों में उत्साह होता था . मिथिला की ह्रदय
स्थली दरभंगा कभी खेल सिटी के रूप में जाना जाता था . कुश्ती , कबड्डी ,
निशानेवाजी , फुटबॉल ,लॉन्ग टेनिस , टेबल
टेनिस , शतरंज , पच्चीसी , पोलो , बिलियर्ड , घुड़सवारी ,स्क्वाश यहाँ की आम खेल थी
जिसे राज दरवार से संरक्षण प्राप्त था . भारत
के दो लोकप्रिय खेल पोलो और फुटबॉल के नाम पर दरभंगा कप और दरभंगा शील्ड के साथ
घुड़दौड़ में टर्फ क्लब के अधीन दरभंगा रेस
की शुरुआत १९३० के दशक में की गयी जिसमे देश – विदेश की टीम भाग लेती थी . पोलो को
खेलों का राजा कहा जाता है . वर्तमान में ७० देशों में यह खेला जाता है. पोलो के
सभी प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में दरभंगा की टीम भाग लेती थी Carmichael कप , एजरा
कप आदि . दरभंगा टीम carmichael कप में विजयी हुई थी जिसकी चर्चा देश – विदेश की
पत्र-पत्रिका मे हुई थी दरभंगा के टीम में
महाराजा कामेश्वर सिंह , राजबहादुर विशेश्वर सिंह , जे. पी. डेनवी, कप्तान माल
सिंह जैसे ख़िलाड़ी थे जिन्होंने दरभंगा का नाम रौशन किया था . दरभंगा में पोलो भले हीं अब अतीत की बात हो गयी हो , लहेरियासराय स्थित पोलो मैदान का नाम बदलकर नेहरु स्टेडियम कर
दिया गया हो परन्तु अभी भी लोग पोलो मैदान
के नाम को भूले नहीं हैं और जो हमें अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है .लोकप्रिय
खेल फुटबॉल में दरभंगा शील्ड और महाराज कुमार विशेश्वर सिंह फुटबॉल चैलेंज कप देश
स्तर पर नामी प्रतियोगिता थी. दरभंगा शील्ड भारतीय फुटबॉल एसोसिएशन्स से सम्बद्ध
प्रतिष्ठित टूर्नामेंट थी जिसमे देश के
शीर्ष टीम मोहन बगान और ईस्ट बंगाल का अक्सर मुकाबला होता था . दरभंगा शील्ड के एक
मैच की चर्चा आज भी फूटबाल जगत मे होती है जिसमे १९३०-४० दशक के मशहूर फुटबॉल और
क्रिकेट ख़िलाड़ी अमिया कुमार देव ने फाइनल और सेमी फाइनल में ४ गोल किये थे और मोहन
बगान ४-१ से जीता था . इंडियन फुटबॉल
एसोसिएशन की स्थापना दरभंगा में हुई थी . २०सितम्बर १९३५ में दरभंगा के यूरोपियन
गेस्ट हाउस वर्तमान गाँधी सदन में मोउनुल हक की अध्यक्षता में हुई जिसमे महाराज
कामेश्वर सिंह संरक्षक और राजा बहादुर विशेश्वर सिंह सचिव मनोनीत हुए थे . दरभंगा
के राज मैदान और उसके बगल में स्थित विशेश्वर मैदान में अक्सर मैच होती रहती थी .
हरियाली से अच्छादित मनोरम राज मैदान जिसके पश्चिम में राजकिला की ऊँची दिवार ,
दक्षिण मध्य में स्थित भव्य इंद्र भवन ,उत्तर मध्य में इंद्र भवन के सीध में भव्य
तोरण द्वार और चारों ओर सड़क और पेड़ इस मैदान की खूबसूरती मे चार चाँद लगाती थी .
देश के नामी टीम यहाँ खेलने आती थी . खेल देखने के लिये लोग उमड़ पड़ते थे . ताली की
करतल ध्वनि ऊँची किला की दिवार से
प्रतिध्वनित होकर काफी देर तक ख़िलाड़ी के हौसला अफजाई करती थी . फुटबॉल का जादू
ऐसा यहाँ के लोगों के मन मिजाज पर चढ़ा कि पुरे मिथिला में यह खेल छा गयी . दरभंगा स्पोर्टिंग क्लब और राज स्कूल की
टीम यहाँ प्रतिदिन अभ्यास करती थी .दरभंगा के संस्कृति मे खेलकूद
इतना रच बस गया था कि युवराज जीवेश्वर सिंह के यज्ञोपवित के अवसर पर बांटी गई
निमंत्रण कार्ड पर संगीत –नाटक आदि के साथ खेलकूद के आयोजन का भी जिक्र था जिससे
स्पष्ट होता है कि मिथिला के संस्कृति में खेल का महत्वपूर्ण स्थान था . दरभंगा
में विभिन्न खेलों के लिये पर्याप्त कीड़ा स्थल दरभंगा में था .कुश्ती के लिये
अखाड़ा मिथिला के गाँव – गाँव में थे . उस ज़माने के पहलवान दुखहरण झा ,फुचुर पहलवान
का बड़ा नाम था . दुखहरण झा के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उन्होनो दारा सिंह को
कुछ हीं मिनटों में पछाड़ दिया था .वे रुस्तमे हिन्द मंगला राय के शिष्य बन गये .
लोहना का भुयां अखाड़ा आज भुयां स्थान है जहाँ आज मंदिर है . पहले पर्व त्यौहार के
अवसर पर दंगल का आयोजन होता था . कुश्ती के क्षेत्र में दरभंगा के दंगल का जिक्र
राष्ट्रीय स्तर पर मिलता है .
१९३८ में
बंबई (वर्तमान मुम्बई) में एक अंतर्राष्ट्रीय दंगल हुआ, जिसमें रूमानिया, हंगरी, जर्मनी, तुर्की, चीन, फिलिस्तीन आदि देशों के मल्लों ने भाग लिया। इस
प्रतियोगिता में जर्मनी के मल्ल क्रैमर ने अजेय गूँगा को परास्त कर भारत को चकित
कर दिया, किंतु उसे दरभंगा में पूरणसिंह बड़े से हार माननी
पड़ी.(साभार
bhartdiscovery.org)