दक्षिण भारत के मदुरै , रामेश्वरम , लेपाक्षी की यात्रा।
२०२० में मिथिला के दरभंगा हवाई अड्डा के खुलने से दक्षिण भारत की यात्रा अब काफी सुगम हो गयी है। विगत वर्ष २०२३ में दरभंगा से कर्णाटक की राजधानी बंगलुरु तक हवाई मार्ग से फिर बंगलुरु से तमिलनाडु के मदुरै के लिए प्रातः प्रस्थान किया और सपरिवार मीनाक्षी मंदिर में दर्शन किया। उस दिन तमिल का नव वर्ष धन्मुकि था जिसके कारण अत्यधिक भीड़ थी मंदिर में जाने के लिए पश्चिम गोपुरम के तरफ से लाइन में लग गया आगे ससरते हुए दक्षिण गोपुरम तरफ बढ़ रहा था तभी एक युगल ने मदद की पेशकश करी और टिकट काउंटर से दर्शन के लिए हमलोगों का टिकट ले आये और पूर्वी गोपुरम से हमलोग मंदिर के अंदर प्रवेश किया वहां भी लम्बी कतार थी मेरे साथ एक साल की पोती व्याकुल होकर रो रही थी तभी वह युगल हमारे पास आये और लाइन से बाहर कर खाली लाइन से आगे बढ़ा दिया और हम सभी ने भव्य गलियारे से होते हुए छत पर बने सुन्दर पेंटिंग निहारते हुए बीच में स्थित पुष्कर्णी ( छोटा तालाब ) के बगल से सोमेश्वर एवं मीनाक्षी जी का दर्शन कर कृत्य कृत्य हो गया। अगले दिन सवेरे आसानी से सोमेश्वर ( शिव ) एवं मीनाक्षी ( पार्वती ) जी का दर्शन कर रामेश्वरम के लिए सड़क मार्ग से प्रस्थान किया।रामेश्वरम मंदिर के पास पहुँच पंडा से कल सवेरे पूजा अर्चना की बात तय कर धनुष कोढ़ी और अरिचल मुनाई के लिए प्रस्थान किया। शाम के बाद इस वीरान समुद्री किनारे पर रुकने की मनाही है। यहाँ हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी मिलती है। हमलोग वीरान एक बस्ती जो समुद्री तूफान में विध्वंस हो गयी थी को देखते हुए दूर तक चले गए और लौटकर पाया कि हमारी बस नहीं है। अँधेरा बढ़ रहा था हिन्द महासागर में उफनती लहर भयावह हो रही थी अधिकांश पर्यटक लौट चुके थे। यहाँ से रामेश्वरम लौटना मुश्किल लग रहा था। मन में सिहरन पैदा हो रही थी तभी एक कार हमलोगों के पास रुकी। वही युगल थे जो मदुरै मंदिर में मिले थे उन्होंने सहायता की पेशकश की। उनकी कार में कुछ खराबी आ जाने के कारण उन्हें लौटने में विलम्ब हुई थी। हम लोगों को उन्होंने रामेश्वरम पहुंचा दिया। सबेरे रामेश्वरम में पूजा अर्चना कर हमलोग वापस बंगलोर आ गए।