उग आये पत्तों की झुरमुट और बी डी डी बाग़ पर लगातार ट्रैफिक इसे दृश्य से ओझल करता है फिर भी यदि मौका मिले तो जरा ठहर कर कोलकाता के डलहौज़ी स्क्वायर के दझिण - पश्चिम कोना में दरभंगा के महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह की स्टेचू को जरूर देखें . प्रशंसा किया बिना नहीं रहेंगें . यह सफ़ेद संगमरमर की मूर्ति अन्य मूर्ति से अलग है . अन्य मूर्ति जहाँ खड़ी मुद्रा में है वहीँ यह पलथी मार कर अलंकृत सिंहासन पर दाएं हाथ में तलवार , बांये में ढाल , शिर पर पारिवारिक रत्न से सजी पाग तथा गले में भारत साम्राज्य का शूरवीर नाईट कमांडर का चेन पहने हुए है . एक एक विवरण बखूबी तरासी हुई जो इस मूर्ति को कला के झेत्र में अनुपम बनाती है . दूसरी खूबी यह प्रख्यात ब्रिटिश मूर्तिकार एंड्रू ओस्लो फोर्ड का इंडिया में निर्मित दो मूर्ति में से एक ज्ञ है . एक घोड़े पर सवार मैसूर के महाराज वादियर चमराजेंद्र X की है जो पहले कर्ज़न पार्क के सामने थी जो अब बंगलोर के लालबाग बोटैनिकल गार्डन में है l लंदन में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री ग्लेडस्टोन की खड़ी मूर्ति उनके द्वारा निर्मित काफी चर्चित रहा है . कोलकाता के ४२ चौरंगी के दरभंगा के महल के रियल स्टेट के कंपनी द्वारा खरीदने और तोड़ दिए जाने के बाद यही स्टेचू सिटी ऑफ़ जॉय से सिटी ऑफ़ पोंड , दरभंगा का रिस्ता बताने को शेष हैं .इस मूर्ति का अनावरण २५ मार्च १९०४ को बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंड्रू फ़्रेज़र द्वारा सर गुरुदास बनर्जी (जो कोलकाता यूनिवर्सिटी जे पहले भारतीय कुलपति थे तथा बंगाल हाई कोर्ट के जज थे ) , राजा पियरे मोहन मुखर्जी जो लक्ष्मीश्वर सिंह के साथ हीं शाही परिषद् के सदस्य थे की गरिमामयी उपस्थिति में हुई . महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह के वारे में कलकत्ता ओल्ड एंड न्यू के लेखक H. E. A. COTTON की चर्चित किताब जिसने सभी किताबों का रिकॉर्ड तोड़ दिया ने कहा है कि ये पूर्व और पश्चिम की विशेषताओं को सफलतापूर्वक जोड़ने का काम किये . हमें अपने ऐसे बिभूतियों पर गौरव करनी चाहिए जिनकी चर्चा पूर्व से लेकर पश्चिम तक है उनके सम्मान से दरभंगा का मान बढ़ेगा इसे हमें याद रखना होगा .
आप इस अनमोल धरोहर को हमारी आने वाली पीढ़ियों तक ऎसे ही पहुँचाते रहे। आपका बहुत आभार।
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